खूंटी। कर्रा प्रखंड के डुमारी, गुमड़ू और मधुगामा गांव में शनिवार का नजारा ही कुछ और था। क्या बच्चे और क्या बुढ़े सभी के चेहरे पर मुस्कान थी। आखिर हो भी क्यों नहीं, इन गांवों के तीन युवक उत्तरकाशी के टनल में 17 दिनों तक जिंदगी की जंग लड़कर सकुशल घर जो लौटे हैं। शुक्रवार आधी रात के बाद घर लौटे इन युवकों के गांव में शनिवार को उत्सव का माहौल दिखा। सुबह से ही ग्रामीण इन युवकों के घरों में आकर उनके परिवारों के साथ अपनी खुशियां साझा कर रहे थे।
18 घंटे बाद टनल के बाहर से आवाज आई, तो जगी जीने की उम्मीद: विजय होरो
टनल में 17 दिनों तक फंसे रहने के बाद सकुशल घर लौटे गुमड़ू गांव के विजय होरो ने बताया कि 11 नवंबर को वे सभी टनल में नाइट शिफ्ट में काम कर रहे थे। 12 नवंबर को दीपावली के दिन सुबह छह-साढ़े छह बजे तक टनल में काम करने के बाद सभी को टनल से बाहर निकलना था, लेकिन बाहर निकलने के आधा घंटा पहले ही टनल के फेस के पास मलवा गिरने लगा और वह सभी वहां फंस गए। उसने बताया कि शुरुआत में दो दिनों तक लगातार टनल में मलवा गिरता रहा, तो वह भी अन्य मजदूरों की तरह बुरी तरह डर गया था और संकट की इस घड़ी में उसे अपने माता-पिता, पत्नी, बच्चे और अन्य स्वजनों की बहुत याद आ रही थी। विजय ने कहा कि उसे लग रहा था कि वह अब परिवार से कभी नहीं मिल पाएगा। टनल ढ़हने के 18 घंटे बाद टनल में पानी निकालने के लिए लगाई गई चार इंच की पाइप से जब बाहर की आवाज आई कि तुम सब ठीक हो, तो उम्मीद की नई किरण जगी।
उसने बताया कि टनल के बाहर से आवाज आने के बाद टनल में फंसे सभी मजदूरों को भरोसा हो गया कि अब उन्हें टनल से सकुशल बाहर निकाल लिया जाएगा। उसने बताया कि उसी चार इंच के पाइप से शुरुआती 10 दिनों तक टनल के अंदर ऑक्सीजन और खाने के लिए मुरही भेजा जाने लगा। 10 दिनों तक सभी वहां खाने के रूप में सिर्फ मुरही ही खा रहे थे। इसके बाद छह इंच की एक पाइप डाली गयी, जिससे दाल, भात, रोटी, सब्जी, फल, ड्राई फ्रूट्स आदि सामग्री खाने के रूप में अंदर भेजा जाने लगा। साथ ही माइक्रोफोन भी भेजा गया, जिससे अंदर फंसे श्रमिक बाहर अपने स्वजनों और मित्रों से बात करने लगे।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित अन्य अधिकारी भी लगातार श्रमिकों से संपर्क करते रहे। इससे सभी के मन में व्याप्त भय पूरी तरह समाप्त हो गया। उसने बताया कि शनिवार को उसका 22वां जन्मदिन था। वह इसे अपना नया जन्मदिन समझ रहा है। दो दिन पहले उसके एकलौत बेटे आर्यन का पहला जन्मदिन था। आज जब मौत को मात देकर जन्मदिवस के दिन ही घर लौटा है, तो शाम में अपने स्वजनों के साथ अपने इकलौते बेटे और स्वयं का जन्मदिन मनाया।
उसने बताया कि संकट के समय वह सोनमेर माता से सकुशल स्वजनों के पास पहुंचाने की प्रार्थना कर रहा था। अब जब वह सकुशल घर पहुंच गया है, तो सबसे पहले वह शनिनवार को सोनमेर माता के दरबार में जकार पूजा-अर्चना की। उसने बताया कि क्षेत्र में काम न मिलने के कारण मजबूरी में वह दो माह पूर्व वहां काम पर गया था, लेकिन भविष्य में अब वह काम के लिए बाहर नहीं जाना चाहता। उसका कहना है कि अब क्षेत्र में ही कहीं कुछ काम कर परिवार के बीच रहेगा।
बहन की शादी में हुए कर्ज उतारने के लिए काम में गया था चमरा उरांव
टनल से सकुशल बाहर निकलकर घर लौटे डुमारी गांव के चमरा उरांव में बताया कि कुछ माह पूर्व बहन की शादी के कारण सिर पर चढे कर्ज को उतारने के उद्देश्य से ही वह दो माह पहले वहां काम पर गया था। उसने बताया कि टनल के अंदर अपने अनुभव को पत्रकाराें और ग्रामीणों के साथ साझा किया।
क्षेत्र में ही काम मिले, तो बाहर कभी जायेंगे: गणपत होरो
टनल से निकाल कर सकुशल घर लौटे मधुगामा गांव के गणपत होरो ने बताया कि वह और उसका बड़ा भाई विलकन होरो एक साथ टनल में वहां काम कर रहे थे। अलग-अलग शिफ्ट में ड्यूटी होने के कारण गणपत टनल के अंदर फंस गया, जबकि उसका भाई विलकन बाहर था। उसने बताया कि टनल में फंसे कंपनी के दो फोरमैन गब्बर सिंह नेगी और सबा अहमद टनल के अंदर फंसे सभी मजदूरों का हर समय पूरा ख्याल रख रहे थे। साथ ही सभी मजदूरों को हौसला बनाए रखने का हमेशा साहस दे रहे थे। दोनों फोरमैन द्वारा एक परिवार की तरह सभी का ख्याल रखने से मजदूरों का हौसला बना रहा। उसने कहा कि क्षेत्र में काम के अभाव के कारण मजबूरी में उन्हें पेट के लिए घर से पलायन करना पड़ता है। उसने कहा कि भविष्य में अगर क्षेत्र में ही काम मिल जाता है, तो वह कभी बाहर कमाने नहीं जायेगा।
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और सेना का जताया आभार
टनल से सकुशल निकलकर घर पहुंचे तीनों मजदूरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सेना और वहां के अधिकारियों और बचाव दल में शामिल सभी लोगों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए जिस प्रकार से सरकार ने समस्त संसाधन झोंक दिए थे, इससे यह आभास हुआ कि सरकार गरीबों की जान की भी उतनी ही चिंता करती है, जितनी अन्य विशिष्ट लोगों की।
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