नई दिल्ली। तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन. शार्ट में TN शेषन. भारत के 10 वें मुख्य चुनाव आयुक्त. एक ऐसा एडमिनिस्ट्रेटर जो नेताओं से ज्यादा फेमस हुआ. शेषन 1990 से 1996 तक चुनाव आयुक्त रहे. इस दौर में शेषन के कई कारनामे अब किस्सों की शक्ल में याद किये जाते हैं. मसलन शेषन जो कहा करते थे, मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं. शेषन- जिनके बारे में लालू प्रसाद यादव ने कहा था, शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे. शेषन- जिनके बारे में कहा जाता था कि नेता या तो भगवान से डरते हैं या शेषन ने. हालांकि शेषन का करियर सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं था. इससे पहले भी शेषन का एक लम्बा करियर था जिसके बारे में लोग कम जानते हैं.
शेषन की पैदाइश साल 1932 में हुई थी. 12वीं की पढ़ाई उन्होंने गवर्नमेंट विक्टोरिया कॉलेज, पलक्कड़ से की. एक दिलचस्प ट्रिविया ये भी है कि मेट्रो मैन इ श्रीधरन भी इस दौरान इसी स्कूल में पढ़ रहे थे. दोनों का चयन जवाहरलाल नेहरू टेक्निकल यूनिवर्सिटी, काकीनाड़ा आंध्र प्रदेश में हुआ. लेकिन शेषन ने मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से बीएससी करना चुना और यहां से फिजिक्स में ऑनर्स लेकर स्नातक हुए. यहां से निकलकर उन्होंने पुलिस सर्विस का एग्जाम दिया, चुने भी गए, लेकिन ज्वाइन नहीं किया. 1954 में यूपीएससी क्लियर किया और तमिल नाडु काडर में जुड़ गए. 1962 में उन्हें पहली बड़ी जिम्मेदारी मिली. उन्हें मद्रास ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट का डायरेक्टर नियुक्त किया गया. इसी नियुक्ति के जुड़ा है पहला किस्सा.
ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में पहली बार शेषन को बड़ी जिम्मेदारी मिली थी. और आते ही उन्होंने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. ट्रैफिक के नियमों को लेकर शेषन काफी स्ट्रिक्ट थे. धुन ऐसी थी कि डिपार्टमेंट का डायरेक्टर खुद सड़कों पर बस ड्राइवर्स को हड़काते देखा जा सकता था. खुद वर्कशॉप में रहकर सारा काम देखते थे. एक रोज़ की बात है. एक बस ड्राइवर ने शेषन से कहा, न आप बस के इंजन को समझते हैं, न ही बस चलाना जानते हैं. आप कैसे हमारी समस्याएं समझ सकते हैं. शेषन ने इसे एक चैलेंज की तरह लेते हुए बस चलाना सीखा, बल्कि घंटों वर्कशॉप में भी गुजारे. वो कहते थे, मैं इंजन खोल सकता हूं, उसे दुबारा लगा सकता हूं और बस चला भी सकता हूं. एक रोज़ उन्होंने बीच रास्ते एक बस को रोका, ड्राइवर को उतारा और खुद 80 किलोमीटर बस चलाकर यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाया.
मैं स्पेस से शेषन बोल रहा हूं
यहां से शुरू होकर शेषन की गाड़ी पहुंची हार्वर्ड. वहां उन्होंने पब्लिक अडमिंस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री ली. यहीं पर उनकी दोस्ती सुब्रमण्यम स्वामी से हुई. ये दोस्ती आगे जाकर भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखने वाली थी. लेकिन वो अभी दूर की बात है. 1969 में भारत लौटने के बाद शेषन को एटॉमिक एनर्जी कमीशन का सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. और 1972 में वो डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस में जॉइंट सेक्रेट्री बने. इस कार्यकाल से जुड़ा एक किस्सा, इंदिरा गांधी के मीडिया एडवाइजर रहे HY शारदा प्रसाद के बेटे RV शारदा प्रसाद बताते हैं. प्रसाद लिखते हैं कि जब भी उनके घर में शेषन का फोन आता था. एक आवाज गूंजती थी, ‘हेलो मैं स्पेस से शेषन बोल रहा हूं.’ दरअसल उसी दौर में एक और शेषन, NK शेषन, इंदिरा गांधी के सचिव हुआ करते थे. कन्फ्यूजन न हो इसलिए शेषन कहते थे, मैं स्पेस से शेषन बोल रहा हूं.
1985 में राजीव गांधी सरकार में उन्हें पर्यावरण और वन मंत्रालय में सचिव का पद मिला. उनके कार्यकाल में पर्यावरण और वनों को लेकर कई सख्त क़ानून लागू किए गए. इस दौरान उन्होंने नर्मदा और टिहरी बांध परियोजना के पर्यावरण पर हानिकारक प्रभावों को लेकर भारी विरोध किया.जंगली जानवरों के शिकार को लेकर भी वो काफी सख्ती बरतते थे. आरवी शारदा प्रसाद बताते हैं कि इस दौरान एक बार शेषन अपने ऑफिस में बैठे थे. तभी उन्हें टीवी पर एक खबर दिखाई दी. वहां लिखा था, “टू टाइगर्स किल्ड”. फिर क्या था, शेषन ने पूरा ऑफिस सर पर उठा लिया. तमाम अधिकारियों को तलब किया गया. दो बाघ मारे गए, कैसे और क्यों. शेषन कोई बहाना सुनने को तैयार नहीं थे. उन्होंने तुरंत इन्क्वायरी बिठा दी. लेकिन इन्क्वायरी होती कैसे. खबर असल में बाघों की थी ही नहीं. बात लिट्टे के तमिल टाइगर्स की हो रही थी. लेकिन शेषन का खौफ ऐसा था कि किसी की हिम्मत न हुई कि उन्हें ये कह सके.
1989 में राजीव गांधी सत्ता से बाहर हुए और वीपी सिंह की सत्ता में एंट्री हुई. शेषन को कैबिनेट सेक्रेटरी का पद मिला. इसी बीच कश्मीर में अलगाववादियों ने गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद का अपहरण कर लिया. मूसा रज़ा, जो उन दिनों जम्मू कश्मीर के सेक्रेटरी हुआ करते थे बताते हैं, ;उन दिनों एक शक ये भी था कि टेलीफोन एक्सचेंज में काम करने वाले अलगाववादियों के समर्थक हो सकते हैं’. शेषन ने उनसे कहा कि तमिल में बात किया करें. कश्मीर में मामला अजीब कश्मकश का था. अलगावादियों ने रुबिया के बदले 5 आतंकियों को रिहा करने की मांग कर रहे थे. मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला आतंकियों को रिहा करने के बिलकुल पक्ष में नहीं थे.क्योंकि इससे एक ख़राब नजीर बन सकती थी. दिल्ली में इस मामले में लगातार हाई लेवल मीटिंग चल रही थीं. आखिर में तय हुआ कि रुबिया के बदले आतंकियों को छोड़ दिया जाएगा. मूसा रज़ा बताते हैं कि आतंकियों के रिहा होते ही उनके पास शेषन का कॉल आया. और उन्होंने रजा को बधाई दी. रजा बताते हैं कि दो साल बाद उनकी शेषन से दिल्ली एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज में मुलाकात हुई. तब तक शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बन चुके थे. रजा ने शेषन से पूछा, मुझे हैरानी है कि 13 दिसंबर की सुबह जब आपने मुझे आतंकियों की रिहाई का अल्टीमेटम दिया, आपके रुख में बदलाव का क्या कारण था? शेषन ने जवाब दिया, ”खेल जैसा तुम समझ रहे हो, उससे कहीं बड़ा था. निशाना कहीं और ही लगना था.”
शेषन वर्सेज़ द नेशन
1990 में ही शेषन देश के 10 वें मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त हुए. शेषन की नियुक्ति में चंद्रशेखर सरकार में क़ानून और वाणिज्य मंत्री रहे, सुब्रमण्यम स्वामी का बड़ा हाथ था. टीएन शेषन की जीवनी ‘शेषन- एन इंटिमेट स्टोरी’ में इस बाबत एक किस्सा दर्ज़ है. जिस रोज़ सुब्रमण्यम स्वामी शेषन के पास मुख्य चुनाव आयुक्त का प्रस्ताव लाए, शेषन राजीव गांधी से मुलाक़ात करने गए. राजीव न अपनी सहमति तो दे दी लेकिन जाते हुए कहा, “वो दाढ़ी वाला शख्स उस दिन को कोसेगा, जिस दिन उसने तुम्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फैसला किया था.” (दाढ़ी वाले से यहां राजीव का इशारा चंद्रशेखर से था).
मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं
चुनाव आयुक्त बनते ही शेषन के पास वैधानिक शक्तियां आ गई थी. अब उन्हें मंत्रालय या सरकार से डरने की कोई जरुरत नहीं थी. शेषन ने ऐलान किया, मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं. 1991 में लोकसभा चुनावों और उसके बाद हुए तमाम विधानसभाओं में शेषन का असर दिखाई दिया. जहां गड़बड़ी की शिकायत होती, वो तुरंत चुनाव रोककर नए सिरे से चुनाव की घोषणा कर देते. फ़र्ज़ी वोटो पर लगाम लगाने के लिए उन्होंने सरकार के पास प्रस्ताव भेजा कि वोटर आईडी पर मतदाताओं की फोटो लगाई जाए. सरकार ने इंकार कर दिया, ये कहते हुए कि इसमें बहुत खर्चा होगा. शेषन भी मानने वाले नहीं थे. उन्होंने कहा, जब तक फोटो नहीं लगेगी, एक भी चुनाव नहीं होगा. इसके बाद 1993 में फोटो वाली वोटर आईडी की शुरुआत हुई.
आरवी शारदा प्रसाद लिखते हैं कि नेता शेषन से इतने खार खाए रहते थे कि उनका नाम अलशेषन (कुत्तों की एक नस्ल) रख दिया गया था. 1995 में जब शेषन ने बिहार में कई सीटों पर चुनाव खारिज हुआ तो लालू प्रसाद यादव उनसे काफी गुस्स्सा हो गए थे. लालू ने नारा दिया, “शेषन वर्सेज़ द नेशन”. शेषन पर नकेल डालने की कई कोशिशें हुई. उनके खिलाफ सदन में महाभियोग चलाने की सिफारिश हुई. लेकिन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने ऐसा होने नहीं दिया. राव को लग रहा था कि ऐसा करने से जनता में सरकार की छवि ख़राब होगी. लेकिन फिर भी उन्होंने एक दूसरा रास्ता निकाला. संविधान के तहत चुनाव आयुक्त सरकार के अधिकार में नहीं थे. लेकिन ऐसा कोई क़ानून नहीं था कि सिर्फ एक ही चुनाव आयुक्त बनाया जाए. राव ने एमएस गिल और जीवीजी कृष्णमूर्ति को अतिरिक्त चुनाव आयुक्त बना दिया. शेषन की ताकत एक तिहाई हो गयी. शेषन सुप्रीम कोर्ट गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को सही माना.
सम्पादक की नींद हराम
आरवी शारदा प्रसाद एक और किस्से जिक्र करते हैं. एक बार जयललिता की पार्टी AIADMK के कुछ कार्यकर्ताओं ने शेषन से मारपीट की. शेषन आश्चर्यजनक रूप से शांत रहे. एक पत्रकार ने पूछा, क्या आपने इसलिए कोई जवाबी कदम नहीं उठाया क्योंकि आप टीएन यानी तमिल नाडु शेषन हैं. इस मामले में पत्रकारों ने उनके घर पर फोन भी किए. शेषन फोन उठाकर कहते थे, “मिस्टर शेषन उपलब्ध नहीं हैं.” कोई कहता कि सर आप खुद ही फोन पर हैं तो शेषन जवाब देते, “मैं ये नहीं कह रहा कि शेषन घर पर उपलब्ध नहीं हैं. मैं ये कह रहा हूं कि शेषन आपको जानकारी देने के लिए उपलब्ध नहीं हैं”.
एक बार टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व एडिटर दिलीप पडगांवकर ने उन्हें देर रात फ़ोन किया, ताकि शेषन का बयान ले सकें. शेषन ने फोन उठाया और वापस पटक दिया. इसके बाद सेशन पूरी रात पडगांवकर को फोन करते रहे. जैसे ही पडगांवकर फोन उठाते, शेषन फोन पटक देते. शेषन ने अगले दिन कहा, “जब तक पडगांवकर माफी नहीं मांगेंगे, मैं हर रात कॉल करता रहूंगा”.
शेषन समय की पाबंदी और सफाई को लेकर भी काफी मशहूर थे. मीटिंग में कोई एक मिनट लेट आए तो वो उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखा देते थे. सफाई के मामले में उनका कहना था, “मेरे मंत्रालय में टॉयलेट भी इतने साफ़ हैं कि आप उसमें खाना खा सकते हैं.”
शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए उनके द्वारा लाए गए सुधारों के लिए याद रखा जाता है. हालांकि शेषन के नाम कुछ विवाद भी जुड़े. शेषन कांची के शंकराचार्य चंद्रशेखर सरस्वती के बड़े भक्त हुआ करते थे. 1994 में चंद्रशेखर सरस्वती की मृत्यु हुई. शेषन रातों रात एक प्राइवेट प्लेन लेकर कांची पहुंचे. ये विमान रिलायंस के संस्थापक धीरूभाई अम्बानी का था. खबर बाहर आई तो शेषन पर उंगलियां उठी. शेषन ने तुरंत एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और धीरूभाई अम्बानी के नाम एक चेक दिखा दिया. शेषन का राशिफल और हस्तरेखाओं पर भी बड़ा भरोसा था. एक बार उन्होंने घोषणा की थी कि उनकी कुंडली में देश का राष्ट्रपति बनना है. शेषन ने यहां तक कहा कि वो राष्ट्रपति या संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल बनने वाले हैं. इसलिए प्रधानमंत्री को उनसे पंगा नहीं लेना चाहिए.
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 1996 में शेषन का कार्यकाल ख़त्म हुआ. 1997 में उन्होंने स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति के ले आवेदन भरा. लेकिन उन्हें सिर्फ 5 % वोट मिले. 1999 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर गांधी नगर से लालकृष्ण आडवाणी से चुनाव लड़ा लेकिन यहां भी निराशा उनके हाथ लगी. अपने आख़िरी दिन शेषन ने एक ओल्ड ऐज होम में गुजारे. उनके बच्चे नहीं थे. जायदाद के नाम पर किताबों का एक बड़ा संग्रह था. डिमेंशिया के चलते आख़िरी दिनों में वे उन्हें भी नहीं पढ़ पा रहे थे. जितने पैसे कमाए अधिकतर चैरिटी में दे दिया. साल 2019 में चिन्नई के अपने घर में उनकी मृत्यु हो गई. शेषन के काल को भारत में चुनाव आयोग का स्वर्णिम काल कहा जाता है. नवंबर 2022 में लोगों को एक और बार शेषन की हैसियत का अंदाजा लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की नियुक्तियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “ज़मीनी स्थिति ख़तरनाक है. अब तक कई सीईसी रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है. हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे. तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाज़ुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है. हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति खोजना होगा.”
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