हजारीबाग, ऑफबीट संवाददाता। शनिवार को अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर पूरे भारतवर्ष में विराजित, विचरण कर रहे सभी साधु-साध्वीयों के श्री चरणों में दिगम्बर जैन समाज, हजारीबाग का शत शत वंदन, शत शत नमन किया गया। श्री 1008 आदिनाथ भगवान की वेदि के सामने दोनों दिगंबर जैन मंदिरों में अभिषेक व शांतिधारा का कार्यक्रम हुआ। दोनों मंदिरों में प्रातः मंदिर की तीन फेरी लगाई गई।
अक्षय तृतीया के इस पवित्र दिवस पर दिगम्बर जैन समाज ने सभी को मंगल शुभकामनायें प्रेषित की। इस मंगल भावना के साथ कि यह पर्व आप सभी को अक्षय फल प्रदान करें, अक्षय सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो तथा सभी का जीवन मंगलमय हो। दोनों मंदिरों के बाहर आज प्रथम गन्ने का रस भक्तों को पिलाया गया।
मीडिया प्रभारी विजय लुहाडिया ने बताया कि प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया पर्व अत्यन्त हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है। जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया पर्व का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया जैन धर्मावलंबियों का महान धार्मिक पर्व है। यह पर्व प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से सम्बन्धित है। भगवान् आदिनाथ दीक्षोपरान्त मुनि मुद्रा धारण कर छ:माह मौन साधना करने के बाद प्रथम आहारचर्या हेतु निकले किन्तु मुनियोचित आहार-विधि के अभाव होने से वे सात माह तक निराहार रहे। जब वे एक बार आहारचर्या हेतु हस्तिनापुर पधारे तो उन्हें देखते ही राजा श्रेयांस को पूर्वभव स्मरण हो गया और उन्होंने मुनिराज को नवधाभक्ति पू्र्वक पड़गाहन कर इक्षु रस का शुद्ध आहार दिया।
जिस दिन भगवान ऋषभ देव का प्रथमाहार हुआ था उस दिन वैशाख शुक्ल तृतीया थी। भगवान की ऋद्धि तथा तप के प्रभाव से राजा श्रेयांस की रसोई में भोजन अक्षीण (कभी खत्म ना होने वाला), अक्षय हो गया था और यह पवित्र दिन ,”अक्षय तृतीया” के रूप में एक महापर्व के नाम से लोक में प्रसिद्ध हो गया एवं राजा श्रेयांस को दान के प्रथम प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई और संसार में दान देने की प्रथा इस आहार दान के पश्चात ही प्रचलित हुई।
उन्होंने कहा अक्षय पुण्य प्रदायिनी, दान तीर्थ प्रवर्तिनी, इस अक्षय तृतीया पर साधुवर्ग के निमित्त आहार दान देने से उत्तम भोगभूमि और सातिशय पुण्य की प्राप्ति होती है। संध्या में दोनों मंदिरों में महाआरती का कार्यक्रम हुआ तथा भक्तामर पाठ का आयोजन किया गया।
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