खूंटी (Offbeat Special)। लोकसभा चुनाव 2024 बेहद नजदीक है। भाजपा का गढ़ समझे जाने वाले खूंटी संसदीय क्षेत्र में भी लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी लगातार तेज होती जा रही है। हर चौक-चौराहों पर सिर्फ एक ही चर्चा है कि क्या भाजपा अपनी सीट बरकरार रख पाएगी या यहां दूसरा इतिहास लिखा जायेगा।
खूंटी संसदीय सीट के अंतर्गत छह विधानसभा क्षेत्र
अनुसचित जनजातियों के लिए आरक्षित खूंटी संसदीय सीट के अंतर्गत छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं- खूंटी, तोरपा, कोलेबिरा, सिमडेगा, तमाड़ और खरसावां। इनमें तोरपा और खूंटी विधानसभा क्षेत्र जिले में हैं जबकि तमाड़ रांची जिले में, सिमडेगा और कोलेबिरा सिमडेगा जिले में और खरसावां विधानसभा क्षेत्र पश्चिमी सिंहभूम जिले में आता है।
फिलहाल, जनजातीय मामलों और केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा खूंटी से सांसद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सभी छह विधानसभा सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। (Offbeat Special) तोरपा और खूंटी विधानसभा पर भाजपा का कब्जा है जबकि कोलेबिरा और सिमडेगा में कांग्रेस, तमाड़ और खरसावां झामुमो के कब्जे में है।
Offbeat Special: लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा आठ बार कर चुके हैं प्रतिनिधित्व
भाजपा के दिग्गज नेता और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष पद्मभूषण कड़िया मुंडा खूंटी संसदीय सीट से आठ बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जनजातीय बहुल खूंटी संसदीय सीट का गठन 1962 में हुआ था। 1962 और 1967 के लोकसभा चुनाव में में झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह मुंडा और 1971 में इसी पार्टी के निरल एनेम होरो (एनई होरो) ने यहां से जीत हासिल की थी।
1967 में जीत हासिल करने के बाद जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। इससे नाराज होकर एनई होरो और कई अन्य नेताओं ने फिर से झारखंड पार्टी का गठन किया और 19971 के चुनाव में झारखंड पार्टी के एनई होरो ने जीत हासिल की थी। (Offbeat Special) आपातकाल के बाद 1977 में हुए संसदीय चुनाव में जनता पार्टी के कड़िया मुंडा ने जीत हासिल की थी लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी के एनई होरो ने उन्हें परास्त कर दिया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में उपजी सहानुभूति ने कांग्रेस के साइमन तिग्गा को खूंटी से लोकसभा पहुंचा दिया। बाद में 1989, 1991, 1996, 1998 में 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के कड़िया मुंडा ने लगातार पांच बार जीत हासिल की। 2004 के चुनाव में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा यहां से सांसद चुनी गई।
वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने सुशीला केरकेट्टा को टिकट नहीं दिया। उस साल भी कड़िया मुंडा कांग्रेस उम्मीदवार नियेंल तिर्की को परास्त कर लोकसभा पहुंचे और 2014 में भी उन्होंने जीत हासिल की थी। (Offbeat Special) 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने अर्जुन मुंडा को खूंटी से अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी काली चरण मुंडा को पराजित किया था।
कड़े मुकाबले में जीत हासिल की थी अर्जुन मुंडा ने
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में वर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री ने कड़े मुकाबले में महज 1445 वोटों से जीत हासिल की थी। उस चुनाव में भाजपा के अर्जुन मुंडा को 382638 मत मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी काली चरण मुंडा को 381193 वोट मिल थे। (Offbeat Special)
तीन मुद्दों के बीच बंटे हैं मतदाता
जनजातीय बहुल खूंटी जिले का गठन 2007 में रांची से कट कर हुआ था। इसका क्षेत्रफल लगभग 2611 वर्ग किलोमीटर है। खूंटी, रांची, सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां और गुमला जिले (पालकोट प्रखंड) तक फैले खूंटी संसदीय क्षेत्र में सामान्य और पिछड़ी जातियों की संख्या काफी कम है। (Offbeat Special) खूंटी जिले का जातीय समीकरण दूसरे जिलों से अलग है। इस संसदीय क्षेत्र में मुंडा आदिवासियों का प्रभुत्व है। यहां 96.87 फीसदी जनजाति और 5.75 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति की है। यहां की कुल आबादी का 26.64 प्रतिशत ईसाई हैं। खूंटी क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग पांच फीसदी है।
मुंडा बहुल क्षेत्र होने से सभी राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार मुंडा जाति से ही बनाते हैं। सभी चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार एक ही समुदाय (मुंडा जनजाति) से होते हैं। खूंटी संसदीय क्षेत्र के मतदाता इस बार तीन मुद्दों में विभाजित दिख रहे हैं- सरना कोड, डिलिस्टिंग हिंदुत्व और धर्मांतरण। (Offbeat Special) राजनीति के जानकारों का कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का मुद्दा आने वाले लोकसभा चुनाव में गहरा प्रभाव डाल सकता है।
इसी वर्ष 22 जनवरी को अयोध्या में हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान लोगों में जो उत्साह दिखा, उसका असर लोकसभा चुनाव में पड़ना तय है। जानकार बताते हैं कि सरना धर्मावलंबियों द्वारा उठाया गया डिलिस्टिंग का मुद्दा भी चुनाव पर असर डाल सकता है। (Offbeat Special) एक ओर जहां सरना समाज इसका पुरजोर समर्थन कर रहा है, वहीं ईसाई समुदाय इसका कड़ा विरोध कर रहा है और इसे आदिवासियों को बांटने की भाजपा की साजिश करार दे रहा है।
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