रांची। भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा संग महास्रान और श्रृंगार कर 15 दिनों के लिए एकांतवास में जायेंगे। ज्येष्ठ पूर्णिमा 22 जून को प्रसिद्ध जगन्नाथपुर मंदिर में नेम-निष्ठा से स्नान यात्रा अनुष्ठान कराया जायेगा। मंदिर के पुजारी कौस्तुभ मिश्रा ने बताया कि दिन के डेढ़ बजे से अनुष्ठान शुरू होगा।
मंदिर के पुरोहित वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भगवान को 108 कलश में रखे वनौषधि और सुगंधित जल से स्नान करायेंगे। श्रृंगार-पूजन कर 108 दीपों से आरती उतारी जायेगी। ढाई बजे परंपरानुसार आदिवासी पाहन और श्रद्धालु भी दूध, जल और सुगंधित द्रव्य आदि से प्रभु को स्नान करायेंगे। इसके बाद विग्रहों का स्पर्श दर्शन कर मंगल कामनाएं की जायेगी। फिर विग्रहों को पुजारी गर्भ गृह में ले जायेंगे। उन्होंने बताया कि प्रभु गर्भगृह में छह जुलाई तक रहेंगे। दर्शन सुलभ नहीं होगा। दर्शनार्थी श्रीगणेश, श्रीकृष्ण रूप का दर्शन और पूजन कर सकेंगे। प्रभु की सांकेतिक पूजा होगी। गर्भगृह में विग्रहों का रंग-रोगण किया जायेगा।
छह को नेत्रदान, रथ यात्रा सात जुलाई को
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा छह जुलाई को जगन्नाथ स्वामी का एकांतवास समाप्त होगा। मंदिर के गर्भगृह से बाहर आने के बाद भगवान का नेत्रदान किया जायेगा। साथ ही भगवान सर्वदर्शन शुलभ हो जायेंगे। कौस्तुभ ने बताया कि नेत्रदान अनुष्ठान शाम साढ़े चार बजे से शुरू होगा। सात जुलाई को रथ यात्रा निकाली जायेगी।
बीमार होंगे भगवान, चलेगा उपचार
मान्यतानुसार भगवान स्नान करने से बीमार पड़ जाते हैं। ऐसे में उनका उपचार किया जाता है। पुजारी के द्वारा खास काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है। इसमें सोठ, पिंपली, दाल चीनी, गुल मिर्च से बनाया हुआ काढ़ा भगवान श्री जगन्नाथ को पिलाया जाता है।
नौ दिनों तक गुलजार रहेगा मेला
रथ यात्रा मेला नौ दिनों तक गुलजार रहेगा. भक्त भक्ति आनंद के साथ मेले का भी लुफ्त उठायेंगे। तरह-तरह के झूले, नाटक-नवटंकी वालों के साथ खाने-पीने का स्टॉल सब को लुभायेगा। पारंपरिक साजो समानों की जमकर बिक्री होगी। पशु-पक्षी और ढोल-नगाड़ा से लेकर खेती-गृहस्थी तक का साजो-सामान भी मिलेगा। इस तरह का बाजार सिर्फ रथ यात्रा मेले के दौरान ही लगाया जाता है। यही कारण है कि नौ दिनों तक मेला में भारी भीड़ रहती है।