हजारीबाग। विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के वीसी डाॅ पवन कुमार पोद्दार बदल दिए गए हैं। नए कुलपति डाॅ दिनेश कुमार सिंह बनाए गए हैं। डाॅ दिनेश कुमार सिंह नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय पलामू के वीसी हैं। उन्हीं को विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के वीसी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। अल्पावधि में वीसी के बदलाव से राजभवन पर भी सवाल उठने लगे हैं। हाल के दिनों में विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग में गतिविधियां काफी उथल-पुथल रहीं। राजभवन का हस्तक्षेप भी काफी बढ़ गया है। जब से 44 लाख के वित्तीय अनियमितता की खबर सुर्खियों में आयी, तब से काफी कुछ देखने को मिल रहा है।
पहले वीसी पोद्दार ने जांच में पारदर्शिता के लिए ऐसी तीन सदस्यीय टीम गठित की, जिसमें वित्त से जुड़े कोई पदाधिकारी नहीं रखे गए। यह अच्छी पहल थी। लेकिन राजभवन ने उस कमेटी को ही खारिज करते हुए जांच पदाधिकारी फायनांस एडवाइजर को सौंप दिया। इससे समझा जा सकता है कि जांच में कितनी पारदर्शिता होगी। हास्यास्पद स्थिति तो तब हो गई जब राजभवन सचिवालय से भ्रष्टाचार, गबन और वित्तीय अनियमितता की जांच करने अधिकारी आते हैं और झामुमो छात्र नेता चंदन सिंह के केस पर जाकर सूई अटक गई। सुकून बाद बिना कार्यकाल पूरा हुए डीएसडब्ल्यू डाॅ विकास कुमार सिंह और सीसीडीसी डाॅ के के गुप्ता को पदच्यूत कर दिया जाता है। आक्रोश में राजनीति विज्ञान विभाग के एचओडी डाॅ सुकल्याण मोइत्रा पीआरओ और जनसूचना अधिकारी के पद से इस्तीफा की पेशकश कर देते हैं।
बताया जाता है के विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के कुछ पदाधिकारी और एक सेवानिवृत्त अधिकारी यह सब गोरखधंधे में जुड़े हैं। विश्वविद्यालय की वास्तविक स्थिति को सामने आने नहीं देना चाहते हैं। उनका तार राजभवन सचिवालय के एक अधिकारी से जुड़ा है। इस वजह से यह सब खेल हैं रहा है। इससे राजभवन की छवि भी खराब हो रही है। बेहतर ढंग से विश्वविद्यालय संचालित वाले अधिकारी इन्हें रास नहीं आ रहे हैं। येन-केन -प्रकारेण वित्तीय घोटालों के मामले को रफा-दफा करने की मुख्य लगाए जा रहे हैं। इस सिंडिकेट के खेल का जिसने भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विरोध करने का प्रयास किया, वह नप गए। विश्वविद्यालय में उथल-पुथल का खामियाजा यहां अध्ययनरत विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। बहरहाल आगे आनेवाले वीसी का रूख विश्वविद्यालय के प्रति क्या रहता है, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
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