हजारीबाग (डॉ. अमरनाथ पाठक)। झारखंड के भीष्म व गांधी और अबुआ राज के सबसे बड़े पक्षधर आदिवासियों के सबसे बड़े नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर भी गोलियां चली थीं। उसका मूक गवाह में खुद हूं। तब गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखंड से 19 किलोमीटर दूर हरलाडीह गांव में गुरुजी झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ वर्ष 1997 में मंच साझा कर रहे थे। वहां मिडिल स्कूल हरलाडीह के मैदान में झारखंड मुक्ति मोर्चा की जनसभा थी। संस्मरण में वह दिन इसलिए भी ताजा है कि उस दिन मेरे चाचाजी श्री रत्नेश्वर नाथ पाठक जी का शादी के पहले फलदान कार्यक्रम था। संयोग देखिए कि गुरुजी भी रामगढ़ जिला स्थित गोला के नेमरा गांव के रहनेवाले थे। साथ ही चाचा जी का ससुराल भी गोला था। गोला से सभी फलदान के लिए आए थे। हमलोग मेहमानों के आवभगत में लगे थे। इसी बीच में जनसभा में गुरुजी का भाषण सुनने चला गया।
शिबू सोरेन तो संताली भाषा में भाषण देकर बैठ गए। तब उठे विनोद बिहारी महतो और उनका पहला वक्तव्य था “कौन कहता है कि लालखंडी (विद्रोही) खराब होता है। अगर किसी को खराब लगता है, तो सबसे पहला लालखंडी में हूं। इसी पर गांव के एक चतुर्भुज सिंह ने धांय-धांय दो गोलियां मंच पर दाग दीं। संयोगवश गोली किसी को नहीं लगी, लेकिन लेकिन वहां अफरातफरी मच गई। शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो वहां से भागते हुए मेरे दादाजी सेवानिवृत्त डॉक्टर नागेश्वर नाथ पाठक जी के क्लिनिक जी के क्लिनिक पहुंचे और कहने लगे कि ए बाबू बचाई ले. नय तो हमनी के मार देयतो…। मेरे दादाजी दोनों नेताओं को अपने क्लिनिक में बंद कर बाहर से सांकल चढ़ा दी। इसी बीच भीड़ वहां पहुंची और बोलने लगी कि दोनों के बाबू निकाल…। मेरे बाबा बोले, नहीं निकालेंगे, पहले मुझे मार लो, तब मेरी लाश पर चढ़कर उन्हें ले जाना…। चूंकि पीरटांड़ प्रखंड में मेरे बाबा इकलौते डॉक्टर, वह भी 1952 से वहां रहे थे, सभी उनका सम्मान करता था. तो भीड़ लौट गई। फिर बीएमपी कैंप से वायरलेस जाने पर सदलबल प्रशासन दोनों नेताओं को सुरक्षित ले गई। यह तो उस वक्त की स्मृतियां हैं। शिबू सोरेन से जुड़ी कई यादें पत्रकारिता के क्रम में रहीं। उनकी इतनी कहानी है जिसका अंत नहीं है। मैं गुरुजी को नेशनल डेली वर्ल्ड वाइज न्यूज की ओर से सादर शत शत नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
शिबू सोरेन एक ऐसा नाम है, जिनका संघर्ष और बलिदान इतिहास के स्वार्णिम अक्षरों में सदैव जिंदा अर्थात अमर रहेगा। दिशोम गुरु जिंदाबाद, शिबू सोरेन अमर रहे…के अल्फाजों के साथ यह कहना चाहता हूं कि उनका निधन सावन के पावन माह और अंतिम सोमवारी को हुआ। भोलेनाथ अपने श्रीचरणों में उन्हें जगह दें। ऐसे कद्दा कद्दावर शख्सियत सदियों में एकाध बार पैदा लेते हैं। जमींदारी प्रथा खत्म करने के लिए गुरुजी ने संघर्ष किया। झारखंड राज्य छीनकर लिया। आदिवासी, दलित और पिछड़ों के लिए सदैव आवाज बुलंद करते रहे। छोटे से गांव से निकल कर केंद्रीय मंत्री तक के ओहदे पर विराजमान रहे। उनके विरोधी भी उनके पांव छूकर आशीर्वाद लेते रहे, इसी से उनके प्रति मन में श्रद्धा की बात समझी जा सकती है। बहरहाल राजनीति के एक बड़े युग का अंत उनकी अंतिम यात्रा के साथ हो गया। अब आगे की जिम्मेवारी और ऐतिहासिक धरोहर को आनेवाली पीढ़ियों को संभालना बड़ी चुनौती होगी…।
ये भी पढ़िए……….
स्मृति शेष : नहीं रहे झारखंड के गांधी दिशोम गुरु शिबू सोरेन, दिल्ली के अस्पताल में ली आखिरी सांस