खूंटी, (हि.स.)। आमतौर पर देवी-देवताओं की पूजा वैदिक भाषा संस्कृत में मंत्रोच्चार के साथ की जाती है, लेकिन झारखंड के खूंटी जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां संस्कृत में नहीं बल्कि आदिवासियों में प्रचलित मुंडारी भाषा में वैदिक मंत्रोच्चार होता है। जगत जननी देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। यह प्रसिद्ध मंदिर खूंटी जिला अंतर्गत कर्रा प्रखंड के सोनमेर में है।
खूंटी जिला जनजातीय बहुल होने के बावजूद यहां प्राचीन काल से शक्ति की आराधना होती आ रही है। यहां के हिंदू ही नहीं, आदिवासी समाज के लोग भी आदि शक्ति की आराधना पूरे भक्तिभाव से करते हैं। आाम तौर पपर मंदिरों में माता दुर्गा की आरधना संस्कृत के श्लोकों के साथ होती है, पर कर्रा प्रखंड का ऐतिहासिक सोनमेर माता मंदिर संभवतः एकलौता मंदिर है, जहां माता दशभुजी की आराधना और पूजा-अर्चना संस्कृत में नहीं, बल्कि मुंडारी भाषा में की जाती है।
मान्यता है कि सोनमेर माता भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। वैसे तो सालों भर माता के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन मंगलवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि मंगलवार को दशभुजी माता की पूजा-अर्चना से माता से विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। मंगलवार को बड़ी संख्या में भक्त माता की दर्शन के लिए सोनमेर मंदिर पहुंचते हैं।
नवरात्रि में सोनमेर मंदिर की पूजा का विशेष महत्व है। नवरात्रि समाप्ति के पांच दिनों के बाद अश्विन पूर्णिमा में मंदिर परिसर में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें राज्य के बाहर से व्यापारी अपने सामानों की बिक्री के लिए पहुंचते हैं। पूर्व में नवरात्रि की पूजा बड़े धूमधाम से आयोजित होती थी। मान्यता है कि जरियागढ़ के राजा के आदेश के बाद नवरात्रि के पांच दिन बाद मेला लगा कर माता की पूजा होने लगी।
मेले के बाद भैंसे की बलि दी जाती है। सोनमेर में माता की पिंडी लगभग 200 साल पुरानी है। 1981 में धल परिवार के सौजन्य से वर्तमान मंदिर की आधारशिला रखी गई। वर्तमान में ओडिशा के कारीगरों द्वारा भव्य 51 फीट ऊंचा गुंबज तैयार किया गया है। मंदिर में पाहन द्वारा मुंडारी भाषा में पूजा-अर्चना कराई जाती है। मंदिर समिति के अध्यक्ष किशोर बड़ाईक ने बताया कि झारखंड, ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में भक्त माता से मनोकामना मांगने और मनोकामना की पूर्ति होने पर आभार जताने माता के दरबार में आते हैं।
क्या हैं माता सोनमेर के संबंध में मान्यताएं
कर्रा के सोनमेर गांव में दुर्गा पूजा के अवसर पर सैकड़ों साल से मेला लग रहा हैं। क्षेत्र के लोगों द्वारा जरियागढ़ के राजा से माता के मंदिर के विषय में अग्रह किया गया था। राजा द्वारा कठिन आराधना के बाद दशभुजी माता की पिंडी का प्रार्दुभाव हुआ।
बताया जाता है कि पूर्वजों को मां दुर्गा ने सपने में कहा कि मैं तेरे गांव की टोंगरी में बसी हूं। सुबह हड़िया पाहन नामक व्यक्ति ने टोंगरी(चट्टान) में जाकर देखा कि पत्थर की दशभुजी मां दुर्गा की आकृति लिए खड़ी हैं। तत्काल उसने नहा-धोकर कांसा के लोटे में जल लेकर माता की आराधना की। पाहन द्वारा प्रत्येक दिन यह कार्य को देखकर गांव वाले भी पूजा करने लगे और मन्नतें मांगने लगे और मां भगवती सबकी मनोकामना पूरी करती रही। यह चर्चा पूरे क्षेत्र में फैल गयी। माता के चमत्कर के चर्चे सुन भक्त दूर-दराज से भी सोनमेर आने लगे। रामेश्वर धल और ग्रामीणो द्वारा मां की प्रतिमा को पहले झाड़ियों से घेरा गया। 1981 में जगपति धल की अगुवाई में मंदिर का शिलान्यास किया गया। मन्नत मांगने के लिए घर से रंगुवा(लाल रंग वाला) मुर्गा या नारियल और फूल-अक्षत लेकर सुबह मां के दरबार में पहुंचना होता हैं। मन्नत पूरी होने पर बकरे की बलि दी जाती हैं। लोगो में यह भी मान्यता है कि अगर कोई सामान खो गया है, तो यहां आकर मां सोनमेर माता की पूजा-अर्चना करने से उसकी प्राप्ति हो जाती है। इसी वजह से भी लोग दूर दूर से यहां पहुंचते हैं।
एक सिरफिरे ने तोड़ दी माता की पिंडी
माता सोनमेर की पिंडी को 2014 में एक सिरफिरे टांगी से मारकर तोड़ थी। भक्तों ने माता की पिंडी की मरम्मत कराने की योजना बनाई, पर गांव के पाहन और उनकी पत्नी ने कह दिया कि मरम्मत कराने की जरूरत नहीं हैं। माता में यदि शक्ति है, तो टूटी हुई पिंडी खुद अपने पुराने स्वरूप में आ जायेगी। ग्रामीणों ने बताया कि कुछ ही दिनों में पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ भी गई। इसके बाद से सोनमेर माता की ख्याति और बढ़ गई। कुछ वर्ष विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा ने वहां भव्य तोरण द्वार का निर्माण कराया है।
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