रांची, बिजय जैन। प्रातः वासुपूज्य जिनालय के प्रांगण में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने अपने प्रवचन में कहा-जीवन में जिसके हृदय में दया, करुणा, अहिंसा रहती है उनका जीवन सुखद एवम् प्रशस्त होता है। अहिंसक जीवन शैली जिनकी होती है उनके साथ जन्मजात बैरी जीव भी अपने अंदर मैत्री धारण कर लेते हैं। अहिंसा जीवन है, प्रकाश है, अमृत है, तो हिंसा मौत है, अंधकार है, विष है।
हिसा एक ऐसा खतरनाक मोड़ है जो जीवन को पतन की ओर ले जाता है। आज चारों ओर हिंसा का बोलवाला है परस्पर में प्रेम वात्सल्य नहीं है। फलस्वरूप आज का व्यक्ति दुखी है परिवारों में नई बहार नहीं है इन सबका कारण धर्म को नहीं समझना है। व्यक्ति जितनी हिंसा, पाप शरीर से नहीं करते, उतनी हिंसा मन और वाणी से करते हैं। दूसरों से कठोर वचन बोलने वाला, दूसरों की निंदा करने वाला व्यक्ति वाणी से दूसरों के दिल को दुखाता है। मन में दूसरों के प्रति बुरा सोचने वाले भी व्यर्थ की हिंसा करते हैं, मन, वाणी के प्रति जो जागरूक रहता है वह जीवन में सदैव सुखी रहते हैं।
प्रभु तो ऐसे पारसमणि हैं जो भक्त रूपी लोहे को सोना ही नहीं बनाते पारसमणि बना देते है। मंदिर आत्मशांति के केन्द्र हैं। यहां आकर मानसिक, आत्मिक शांति प्राप्त होती है। स्वयं मंदिर जाए दूसरों को मंदिर जाने के लिए प्रेरित करें। भगवान की भक्ति अहंकार को छोड़कर करना चाहिए ।