देवघर। परंपरा के अनुसार देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि से पहले सभी मंदिरों के पंचशूल को उतारा गया। पंचशूल को स्पर्श करने के लिए मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। विधिवत पूजा के बाद पंचशूल को 17 फरवरी यानी शुक्रवार को मंदिर के शिखर पर पुनर्स्थापित किए जाएंगे। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है।
अब जानते है पंचशूल और त्रिशूल में क्या है फर्क
देवघर के पंडित दुर्लभ मिश्रा पंचशूल और त्रिशूल का अंतर बताते हुए कहते हैं-पंचशूल सिर्फ देवघर में है। पंचशूल पांच तत्व से बना है- पृथ्वी (क्षिति), जल ( पानी), पावक ( आग) , गगन ( आकाश) तथा समीर (वायु)। जबकि त्रिशूल में तीन तत्व होते हैं-वायु, जल और अग्नि।
लंकेश से जुड़ा है इतिहास
बैजनाथ मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल के विषय में धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है। एक मत त्रेता युग में लंका के राजा रावण द्वारा देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर निर्माण का है। रावण ने लंका की सुरक्षा के लिए लंका के चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था। अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के पूर्व महासचिव दुर्लभ मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था। जबकि भगवान राम के बस में यह नहीं था। विभीषण ने जब यह बात बताई तभी राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी। राणव ने ही बाबा बैद्यनाथ मंदिर की सुरक्षा के लिए शिखर पर पंचशूल का सुरक्षा कवच लगाया था। यही कारण है कि आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का बाबा बैद्यनाथ मंदिर पर असर नहीं हुआ है। पंडितों का कहना है कि पंचशूल का मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या का नाश करता है। पंचशूल को पंचतत्व-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक बताया है।
बाबा मंदिर एवं माता पार्वती मंदिर से पंचशूल उतारे जाने के समय देवघर डीसी, मंदिर के पुरोहित एवं पंडा समाज एवं आमजन उपस्थित थे।
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