खूंटी, (हि.स.)। जनजातीय बहुल जिला खूंटी में वैसे तो सैकड़ों स्थान पर दुर्गा पूजा की जाती है। सिर्फ जिला मुख्यालय में 11 जगहों पर भव्य पंडाल का निर्माण कर शक्ति की देवी की आराधना की जाती है, लेकिन मेन रोड खूंटी हरि मंदिर में वर्षों से हो रही दुर्गा पूजा की पूरे जिले में विशिष्ट पहचान है।
हरि मंदिर की पूजा पद्धति अन्य पूजा पंडलों से अलग है। यहां की दुर्गा पूजा में बंगाल की झलक देखने को मिलती है। खूंटी की इस विशिष्ट पूजा का इतिहास लगभग 80 वर्ष पुराना है। हरि मंदिर ट्रस्ट के सदस्य अरिंदम दास ने बताया कि उनके पूर्वज तीन सगे भाई तमाल कृष्ण दास, कृष्ण चंद्र दास और खुदुराम दास ने अपनी माता हरिमती देवी के नाम से आजादी से पहले वर्ष 1943 में हरि मंदिर की स्थापना की थी और उसी वर्ष से यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी।
तब से अब तक परिवार के सदस्यों द्वारा यहां बांग्ला रीति रिवाज के अनुसार प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा प्रति वर्ष की जाती है। यहां की पूजा में आसपास गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, जिससे पूरे मंदिर परिसर में ग्रामीण मेले की झलक नजर आती है। उन्होंने बताया कि पूजा के लिए बाहर से किसी प्रकार का कोई चंदा नहीं किया जाता, पूजा में होनेवाले सारे खर्च परिवार के सदस्य स्वयं उठाते हैं। परिवार के जो भी सदस्य खूंटी से बाहर रहते हैं, वे सभी पूजा में आवश्यक रूप से यहां पहुंचते हैं और पूजा में शामिल होते हैं। अरिंदम दास ने बताया कि हरि मंदिर में कलश स्थापना के साथ ही पूजा की शुरुआत हो जाती है, लेकिन मुख्य पूजा का शुभारंभ महाषष्ठी तिथि में बेलबरण अनुष्ठान के साथ शुरू होती है। पूजा में खास तौर पर बंगाल से आचार्या(पुरोहित) बुलाए जाते हैं।
यहां स्थापित होनेवाले प्रतिमा का निर्माण पुरुलिया के मयूर कंठ परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस बार भी उक्त परिवार के सदस्यों द्वारा 10 फीट ऊंची परंपरागतत प्रतिमा का निर्माणकिया गया है। यहां की पूजा की मुख्य विशेषता दशमी तिथि को होनेवाला सिंदूर खेला है, जिसमें परिवार की महिलाओं के साथ ही शहर में रहनेवाले अन्य बंगाली परिवार की महिलाएं भी शामिल होती हैं।
प्रतिमा का विसर्जन दशमी तिथि को ही विधि विधान से किया जाता है। वर्तमान में परिवार के वरिष्ठ सदस्य अशोक कुमार दास, नेताजी दास और शैवाल दास के दिशा निर्देश पर अरिंदम दास, सैकत दास, अनिर्बन दास, देवाशीष दास, देवव्रत दास, अंजन दास, जयंतो दास सहित परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा पूजा के सफल आयोजन में सहयोग किया जाता है।
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