बलरामपुर। सूर्य उपासना का पर्व चार दिवसीय छठ पूजा उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देते ही संपन्न हो गया। छठ महापर्व के चार दिन के अनुष्ठान के आखिरी दिन छठ व्रतियों ने छठ मैया की आराधना करके परिवार की सुख-समृद्धि के लिए मंगल कामना की। नहाय खाय के साथ शुरू हुआ चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व सुबह के अर्घ्य देने के साथ ही संपन्न हुआ। व्रतियों ने 48 घंटे के निर्जला व्रत के बाद पारण किया। नगर पंचायत की ओर से विभिन्न घाटों पर छठ पूजा को लेकर भव्य इंतजाम किए गए थे।
चार बजे ही घाटों पर लगी श्रद्धालुओं की भीड़
शुक्रवार को तड़के चार बजे से ही जिले के सरहदी क्षेत्र रामानुजगंज में बहने वाली कन्हर नदी के छठ घाट पर श्रद्धालु जुटना शुरू हो गए थे। घाट दीयों के प्रकाश से जगमगा रहा था। महिलाओं के साथ पुरुष फल की टोकरी सिर पर लिए दिखाई दिए, वही पानी में खड़े होकर सूर्य की आराधना की गई। सुबह जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई दी व्रतियों ने अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की। इस दौरान पारंपरिक छठ गीतों…मारबउ रे सुगवा धनुष से… कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए…से माहौल भक्तिमय बना रहा।
श्रद्धालुओं ने खोला 48 घंटे का निर्जला व्रत
बलरामपुर जिले के रामानुजगंज में उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व का पावन समापन हुआ। श्रद्धालुओं ने सूर्य उदय से पहले कन्हर नदी में कई घंटों तक खड़े रहकर सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य अर्पित किया और छठी मैया का पूजन कर अपना 48 घंटे का निर्जला व्रत खोला।
अंबिकापुर से छठ करने पहुंची वर्ती
अंबिकापुर से रामानुजगंज छठ मानने पहुंची पल्लवी जायसवाल ने बताया कि, अंबिकापुर से रामानुजगंज छठ करने आई हूं। मेरी शादी अंबिकापुर में हुई है। यहां मेरा मायका है। पूरे छत्तीसगढ़ में सबसे अच्छा छठ यहां रामानुजगंज में होता है। उत्तरवाहिनी गंगा समान कन्हर नदी यहां बह रही है। आगे उन्होंने कहा कि, रामानुजगंज के लोग पूरी श्रद्धा के साथ यहां छठ मनाते है। यहां के लोग चाहे किसी भी धर्म के हो छठ घाट आकर पर्व का हिस्सा बनते है।
माता सीता ने मुंगेर में की थी सर्व प्रथम छठ पूजा
छठ पूजा का पर्व सूर्य देव को धन्यवाद देने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मुद्गल ने माता सीता को छठ व्रत करने को कहा था। आनंद रामायण के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तब रामजी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस हत्या से मुक्ति पाने के लिए कुलगुरू मुनि वशिष्ठ ने ऋषि मुद्गल के साथ राम और सीता को भेजा था। भगवान राम ने कष्टहरणी घाट पर यज्ञ करवा कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति दिलाई थी। वहीं माता सीता को आश्रम में ही रहकर कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को व्रत करने का आदेश दिया था। मान्यता है कि आज भी मुंगेर मंदिर में माता सीता के पैर के निशान मौजूद हैं।
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