बलरामपुर, विष्णु पाण्डेय। छत्तीसगढ़ के आकाश में प्रतिदिन एक नई सुबह उगती है, लेकिन कहीं न कहीं उसी सुबह एक मासूम ज़िंदगी बुझ भी जाती है। ये वे बच्चे हैं जो हंसते-खेलते दिखाई देते हैं, पर भीतर से टूटी हुई उम्मीदें और अनकही तकलीफ़ें लेकर जी रहे होते हैं। पढ़ाई का दबाव, पारिवारिक कलह और समाज की अपेक्षाओं के बीच फंसे ये नाबालिग जब अपनी पीड़ा कह नहीं पाते, तो मौत को आख़िरी रास्ता समझ लेते हैं।
राज्य में बढ़ते ऐसे मामलों ने अब चेतावनी की घंटी बजा दी है अगर अब भी हम बच्चों के मन की आवाज़ नहीं सुनेंगे, तो आने वाले कल में हर आंकड़ा एक खोई हुई ज़िंदगी की कहानी बन जाएगा।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में वर्ष 2023 में कुल 7,868 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है। हालांकि नाबालिगों की आत्महत्याओं के सटीक राज्यवार आंकड़े रिपोर्ट में अलग से दर्ज नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जारी रिपोर्ट बताती है कि 2021 में देशभर में 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 10,730 बच्चों ने आत्महत्या की थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें छत्तीसगढ़ का भी बड़ा हिस्सा शामिल है।
विशेषज्ञों का कहना है कि, नाबालिगों की आत्महत्या के पीछे कई कारण जुड़े होते हैं। जिनमें शैक्षणिक दबाव और परीक्षा में असफलता का भय, परिवारिक तनाव, माता-पिता के झगड़े या अलगाव, ऑनलाइन बुलिंग या सोशल मीडिया पर अपमान, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे डिप्रेशन और चिंता आर्थिक या सामाजिक दबाव और असुरक्षा की भावना होती है।
राज्य के कई जिलों में हाल के महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बच्चों ने मामूली बातों पर अपनी जान दे दी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ़ पारिवारिक नहीं, बल्कि सामाजिक संकट बनता जा रहा है।
रायपुर के मनोचिकित्सक डॉ. वीके गुप्ता बताते हैं कि, बच्चों में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है संवाद की कमी। वे अपनी पीड़ा किसी से कह नहीं पाते। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों से रोज़ बातचीत करें और उनकी भावनाएं समझें।
राज्य सरकार ने स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन ग्रामीण और छोटे कस्बों में यह सुविधा अब भी सीमित है। शिक्षा विभाग ने हाल ही में निर्देश जारी किए हैं कि प्रत्येक स्कूल में काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जाए, ताकि विद्यार्थी खुलकर अपनी बातें साझा कर सकें।
हाल ही में बलरामपुर जिले के रामानुजगंज निवासी 12 वर्षीय हार्दिक रवि की आत्महत्या ने पूरे क्षेत्र को गहरे सदमे में डाल दिया है। सरस्वती शिशु मंदिर का यह चौथी कक्षा का छात्र पढ़ाई में होनहार था, लेकिन सोमवार रात उसने अपने ही घर में फांसी लगाकर जान दे दी। पिता उस समय अस्पताल में ड्यूटी पर थे। घटना की सूचना मिलते ही परिवार और मोहल्ले में मातम छा गया। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। इस मासूम की आत्महत्या ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर वह कौन-सा दबाव या तकलीफ थी, जिसने एक बच्चे को इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया और क्या हम सच में अपने बच्चों की मन:स्थिति समझ पा रहे हैं?
रामानुजगंज सौ बिस्तर अस्पताल के सीएस डॉक्टर शरद चंद्र गुप्ता बताते हैं कि यदि समय रहते बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में नाबालिग आत्महत्याओं की संख्या और बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को मोबाइल फोन का सीमित उपयोग करने दें, क्योंकि अत्यधिक मोबाइल की लत बच्चों को तनाव, एकाकीपन और अवसाद की ओर धकेल सकती है। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों को शारीरिक खेल-कूद और सामाजिक गतिविधियों में अधिक शामिल किया जाए, जिससे उनका मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास दोनों मजबूत हो सकें।
यदि आपके आसपास कोई बच्चा या किशोर तनाव में है या आत्मघाती विचारों से जूझ रहा है, तो 1908 हेल्पलाइन नंबर पर तुरंत संपर्क करें।
आपको बता दें, छत्तीसगढ़ में नाबालिगों की आत्महत्या केवल आंकड़ों का विषय नहीं, बल्कि समाज के मौन दर्द की कहानी है। हर आत्महत्या के पीछे एक अधूरी पुकार, एक न सुनी गई बात और एक टूटा हुआ भरोसा छिपा है। ये बच्चे हमारी ही गलती का परिणाम हैं। जब हमने उनकी बात सुनने से पहले ही उन्हें “छोटी बात” कहकर टाल दिया। आज जरूरत है कि हम सिर्फ आंकड़े न गिनें, बल्कि हर बच्चे के मन तक पहुँचें। उसे यह एहसास दिलाए कि “गलती अंत नहीं होती, और हार जीवन का आख़िरी पड़ाव नहीं। अगर परिवार, स्कूल और समाज मिलकर बच्चों के मन की उलझनें सुलझाने की जिम्मेदारी लें, तो शायद एक मासूम ज़िंदगी समय से पहले बुझने से बच सकती है। आइए, अब हम सिर्फ़ आंकड़ों पर शोक नहीं, बल्कि समय रहते संवाद शुरू करें क्योंकि जब हम सुनना सीखेंगे, तब शायद कोई बच्चा खामोश होकर नहीं जाएगा।
ये भी पढ़िए…………
आत्मसमर्पण के बाद लापरवाही की हद, बिलासपुर पुलिस की गलती से कैदी ने पी लिया सैनेटाइजर