हजारीबाग, (सीनियर एडिटर) डाॅ अमरनाथ पाठक। कोई दीवाना कहता था, कोई पागल समझता था, मगर इस दिल के रिश्ते को, तो बस विजय वर्मा समझता था…मैं उससे दूर कैसे, दूर कैसे हूं, यह सिर्फ उसकी रूह समझती है या मेरा दिल समझता है…। जी हां झंडा चौक की अपनी प्यारी स्नेह की दीवानी जूली नहीं रही। वह पगली नहीं थी और कुछ भी नहीं भूली थी। स्नेह से जब आर एंड एल संस ज्वेलर्स के मालिक विजय वर्मा ने उसके सिर पर वर्षों पहले हाथ फेरा था, तो जूली की सालों की भूली याद्दाश्त लौट आयी। दु:खद पहलू यह है कि विजय वर्मा की सबसे अजीज शख्सियत जूली 22 अक्तूबर की अहले सुबह दुनिया को अलविदा कर दिया। विजय वर्मा की तो जैसे उनकी पूरी दुनिया ही बिखर गई।
जिस जूली को उसके परिवार और शहरवासियों ने वर्षों से कचरे के ढेर में छोड़ दिया था, उसे कोहिनूर बना विजय वर्मा ने सिर-आंखों पर बैठाया। इंसानियत का नायाब नज़ीर पेश करते हुए जूली को हर दिल अजीज बनाया। उसके कुरेदे गए जख्मों पर उन्होंने ही मरहम लगाया। आज उस जूली से बिछड़ने का ग़म कोई गमजदा ही समझ सकता है। मानवता का ऐसा कर्ज किसी ने नहीं चुकाया होगा। जूली से रात में ही शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मुलाकात की थी। पेट दर्द की शिकायत की थी। जूस पिलाया। क्या पता था कि वह आखिरी सेवा दे रहे हैं। मंगलवार की मंगल बेला में अहले सुबह उसने सदा के लिए आंखें मूंद ली।
स्थानीय खीरगांव मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया। माई हार्ट को मुखाग्नि दे विजय वर्मा फूट-फूट के फट पड़े। जिसने भी यह मार्मिक दृश्य देखा-बस एक ही बात कही-दिल के रिश्ते की टीस हमेशा हमदर्द बनकर उभरती रहेगी। जूली और विजय वर्मा के दिल के रिश्ते की यह अनोखी दास्तां अभी कुछ ही माह पहले वर्ल्ड वाइज न्यूज ने विस्तार से प्रकाशित किया था। जूली तुम सदैव इंसानियत के दिलों में जिंदा रहोगी और तुम्हारे कर्म ऐसे थे कि इस धरा पर विजय वर्मा जैसा मसीहा नसीब हुआ और अब ईश्वर तुम्हें जन्नत बख्शेंगे, यही प्रार्थना है हमारी…कभी अलविदा न कहना, कभी अलविदा न कहना…चलते-चलते मेरा यह स्नेह याद रखना…कभी अलविदा न कहना…
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