जगदलपुर। बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकाें से नक्सलियों के आतंक से त्रस्त हाेकर जम्मू कश्मीर के कश्मीरी पंडितों की तरह ही सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के 103 गांव के 2389 परिवार के कुल 10489 व्यक्ति आंतरिक रूप से विस्थापन की श्रेणी में हैं, जिन्होंने अपना मूल निवास त्याग दिया है। इनमें सबसे अधिक संख्या सुकमा जिले के लोगों की है। सुकमा के 85 गांव के 2229 परिवार से ताल्लुक रखने वाले 9772 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।
इससे यह स्पष्ट है कि बस्तर संभाग में नक्सलवाद का केंद्र बिंदू सुकमा जिला रहा था, लेकिन पुलिस व फाेर्स के बड़ी संख्या में कैंप की स्थापना तथा नक्सलियाें के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई से वर्तमान में हलात बदलने लगे हैं, वहीं पुलिस से प्राप्त आंकड़े के अनुसार सुकमा जिले से विस्थापित हाेकर तेलंगाना में रहने वाले 48 परिवाराें के 216 सदस्य वापस लाैटकर अपने मूल निवास में बस गये हैं।
नक्सलियाें ने तेलंगाना से वापस लाैटे इन्ही परिवाराें में से 45 परिवाराें पर मुखबीरी का आराेप लगाकर चेतावनी भरा पर्चा 24 अप्रेल 2024 काे जारी कर इन्हे भयभीत करने का प्रयास किया गया।नक्सलवाद के भय के कारण शासन के द्वारा विस्थापित परिवाराें काे वापस अपने मूल निवास में बसाने का प्रयास किया गया लेकिन विस्थापित परिवार वापस आना नही चाहते हैं, विस्थापित कुछ परिवार वापस आने के बाद भी विस्थापन वाले अपने निवास काे नही छाेड़ रहे हैं।
बस्तर संभाग के नक्सल आतंक से त्रस्त विस्थापित परिवाराें के उक्त आंकडे़ राज्यसभा में छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य फूलो देवी नेताम ने बस्तर के विस्थापित आदिवासियों को लेकर सवाल के जवाब में केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने अपने जवाब में दिये थे। केंद्रीय जनजातीय मंत्री के अनुसार बस्तर में 10489 लोग आंतरिक रूप से विस्थापन का दंश झेल रहे हैं, यह सभी दोरला, मुरिया, धुर्वा, गोंड, माडिया और हल्बा, जनजातियो से ताल्लुक रखते हैं, जो छत्तीसगढ़ की पिछड़ी जनजातियां हैं।
उन्हाेंने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने सूचित किया है कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के निकटवर्ती जिलों में गांव में सर्वेक्षण दल गठित कर सर्वे कराया गया, जहां आंतरिक रूप से विस्थापित लोग बसे हुए हैं, इन प्रभावित परिवार के लोगों को छत्तीसगढ़ राज्य की पुनर्वास योजना की जानकारी और सुरक्षा शिविरों के माध्यम से सुरक्षा व्यवस्था का भी भरोसा दिलाया गया, इसके बावजूद भी वह अपने मूल निवास पर लौटने को तैयार नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि नक्सलियाें के कोन्टा एरिया कमेटी के सचिव मंगडू ने 24 अप्रेल 2024 काे प्रेस वक्तव्य जारी कर कहा है कि भेज्जी, कोन्टा, पोलमपल्ली, चिंतागुफा, एर्राबोर थाना क्षेत्र के कुछ गांव के कुछ परिवार सलवा जुडूम के दौरान आंध्रप्रदेश, तेलंगाना राज्य में पलायन कर बस गये थे। अब यहां पुलिस कैम्प थाना खुलने व रोड बनने के बाद वापस लाैटकर नक्सली गतिविधि कम हाेना समझकर पुलिस फोर्स के भरोसे सक्रिय रूप से अपना जनविरोधी कार्य करना, हर एक परिवार से पुलिस फोर्स में भर्ती करवाके नक्सलियाें के खिलाफ विरोध एवं पुलिस संपर्क में रहकर मुखबिरी का आराेप लगाया है।
इनमें करिगुण्डा, कोर्रापाड़, पिड़मेल, कोलाईगुड़ा, तोलनीय, पेन्टापाड़ के हिड़मा पटेल सहित 45 से ज्यादा परिवार काे नक्सलियाें के विराेधी हाेने का आराेप लगाते हुए कहा गया है कि अपनी गलती पर क्षमा मांगकर अपने गांव में साधारण रूप से जीवनयपना करने को अपील के साथ चेतावनी दी गई है कि अगर अपनी जनविरोधी कार्य से दूर नहीं होंगे तो उसे सजा दी जायेगी।
यही नक्सल आतंक विस्थापन का मुख्य कारण उल्लेखनीय है कि आंतरिक रूप से विस्थापित वो लोग होते हैं जिन्हें राजनीतिक, जाति, हिंसा या अन्य तरह के उत्पीड़न के कारण अपना मूल निवास छोड़ना पड़ता है। इस तरह के विस्थापित होने वाले लोग देश के ही किसी दूसरी जगह पर अपना ठिकाना बनाकर बस जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे की जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों ने किया था। जम्मू कश्मीर के कश्मीरी पंडितों की तरह ही बस्तर के विस्थापित आदिवासियों को भी आंतरिक रूप से विस्थापित (आईडीपी) कहा जाता है।
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