नई दिल्ली। कहते हैं दुनिया रंगमंच है। और हम सब कठपुतलियां। यहां हर कोई अपनी भूमिका निभाने आया है। बहुत से लोग अपनी भूमिका अच्छे से निभा पाते हैं और उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है। इस रंगमंच के ऐसे ही एक फनकार हैं हबीब तनवीर। मशहूर नाटककार, निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर इसी तारीख को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए थे। तनवीर के मशहूर नाटकों में आगरा बाजार और चरणदास चोर शामिल हैं। पहली सितंबर, 1923 को रायपुर में जन्मे हबीब तनवीर ने 50 वर्ष की अपनी लंबी रंगयात्रा में 100 से अधिक नाटकों का मंचन किया। शतरंज के मोहरे, लाला शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, गांव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद, पोंगा पंडित, द ब्रोकन ब्रिज, जहरीली हवा और राज रक्त उनके मशहूरों नाटकों में शुमार हैं। लंबी बीमारी के बाद उन्होंने 2009 में 08 जून को भोपाल में 85 साल की आयु में दुनिया को अलविदा कहा।
हबीब तनवीर पर कविता भी लिखी गई है। साहित्य अकादमी से सम्मानित देश के जानेमाने कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता है- बात राजधानी और हबीब तनवीर की/ दिल्ली को छोड़ा तो भोपाल गए/ आदतन उनके पीछे/ छत्तीसगढ़ भोपाल गया/ उनके इस छत्तीसगढ़ का/ कोई अलग प्रांत नहीं बना था/ और न रायपुर राजधानी…/ जब हबीब तनवीर/ तीन दिन के लिए अपने घर रायपुर छोटापारा आए/ तो तीन दिन के लिए/ छत्तीसगढ़ भी रायपुर आया। रायपुर में हबीब तनवीर ने पहली बार 11-12 साल की उम्र में लॉरी स्कूल में शेक्सपीयर के ‘किंग जॉन’ में राजकुमार आर्थर का अभिनय किया था।
पिता चाहते थे कि हबीब सिविल सेवा में जाएं। 1940 में पिता ने इस उम्मीद से नागपुर के मॉरिस कॉलेज में हबीब तनवीर का नाम लिखवाया। वहां से एमए की पढ़ाई के लिए हबीब अलीगढ़ चले गए। सिविल सेवा में जाने के पिता के सपने की जगह अभिनय ने ले ली थी और हबीब अपनी एमए की पढ़ाई अधूरी छोड़ कर अपनी तस्वीरों के साथ मुंबई जा पहुंचे। वहां पहले रेडियो में, फिर फिल्म इंडिया में और फिर फिल्मों के लिए उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। इसी दौरान इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से भी हबीब तनवीर जुड़ चुके थे।
मुंबई में ही हबीब तनवीर ने अपना लिखा पहला नुक्कड़ नाटक ‘शांतिदूत कामगार’ का प्रदर्शन किया। उन्होंने इस दौर में कुछ पत्र-पत्रिकाओं का भी संपादन किया। लेकिन मुंबई बहुत लंबे समय तक रास नहीं आई और हबीब तनवीर 1953 में दिल्ली पहुंचे। यहां उन्होंने एलिजाबेथ गौबा के मोंटेसरी स्कूल में नाटक पढ़ाने का काम शुरू किया। जहां 1954 में उन्होंने नजीर अकबराबादी के लिखे को आधार बना कर ‘आगरा बाजार’ नाटक लिखा। 14 मार्च, 1954 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कला विभाग में पहली बार इस नाटक का मंचन किया गया। हबीब ने इसके बाद प्रेमचंद की कहानी पर आधारित ‘शतरंज के मोहरे’ नाटक का निर्देशन किया।