हजारीबाग, डा. अमरनाथ पाठक। विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग में नियम विरुद्ध स्थानांतरण से पूरा विश्वविद्यालय परिवार हतप्रभ है। जिन पांच शिक्षकों का स्थानांतरण हुआ है, वह पांचों शिक्षक की विश्वविद्यालय एवं हजारीबाग शहर में अलग पहचान है। इन लोगों पर आज तक किसी प्रकार की अनियमितता का कोई आरोप कहीं से नहीं लगा है। हां यह जरूर है कि विश्वविद्यालय के अहित में यदि कोई कार्य जाने-अनजाने में हुए हैं, तो उसके प्रति यह लोग कुलपति को हमेशा अवगत कराते रहे हैं। इनसे पूछे जाने पर इन लोगों ने स्पष्ट किया कि यह उनका धर्म है कि विश्वविद्यालय मे यदि कोई कार्य सही नहीं हो रहा है, तो उस संबंध में कुलपति को अवगत कराएं। हम लोगों ने किसी गलत मुद्दे को या किसी झूठे विषय को सामने लाया है क्या ?
ज्ञात हो कि शिक्षक जिन मुद्दों को समय-समय पर उठाते रहे हैं, वह सभी अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। उदाहरण के लिए विश्वविद्यालय के छात्रावास को पुन: प्रारंभ करना, विश्वविद्यालय में जनजातीय अध्ययन केंद्र को प्रारंभ करना, किसी भी बड़े आयोजन के बाद हिसाब-किताब को सार्वजनिक करना तथा समीक्षा बैठक करना, स्थापना दिवस कार्यक्रम मे परंपराओं की अनदेखी नहीं करना, पदोन्नति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना जैसे मुद्दे हैं जो कहीं से भी गलत नहीं प्रतीत होते हैं।
स्थानांतरित शिक्षकों में से कोई भी जी हुजूरी और चापलूसी करने के लिए नहीं जाने जाते हैं। साथ ही अपने-अपने विभाग में अपने कर्तव्यों के निर्वहन में इन सभी शिक्षकों ने आदर्श स्थापित किया है। विश्वविद्यालय एक बहुत ही उच्च स्तरीय संस्था है। इसमें अधिकारियों की मनमानी के लिए कोई स्थान नहीं होता है। विश्वविद्यालय नियम परिनियम और परंपराओं से संचालित होते हैं।
स्थानांतरण के लिए राजभवन का ही निर्देश है कि विशेष स्थानांतरण समिति बनाकर आवश्यकता अनुसार बिल्कुल निष्पक्ष तरीके से स्थानांतरण की प्रक्रिया को पूर्ण की जाए। इसमें संबंधित विषय के विभाग अध्यक्ष की से भी परामर्श की जाए। इस मामले में यह होता नहीं दिख रहा है। यह पहली अनियमितता है।
विभाग अध्यक्षों को अपने कार्यकाल के बीच में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इनका टेनर पोस्ट है और यह अपने पूरे कार्यकाल तक उस पद पर बने रहते हैं। यह अत्यंत विशेष परिस्थिति में हो सकता है जब किसी विभागाध्यक्ष की ओर से कोई बहुत बड़ी वित्तीय या अन्य प्रकार की अनियमितता सामने आई है एवं उच्च स्तरीय व निष्पक्ष जांच उपरांत वह सही पाया गया है। जानकारी के अनुसार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। यह दूसरी अनियमितता है।
यदि अनुशासन से संबंधित किसी मामले पर इस प्रकार का स्थानांतरण किया गया है, तो वह भी नियम विरुद्ध हुआ है। इस संबंध में किसी प्रकार की कार्यवाही से पूर्व संबंधित शिक्षक से स्पष्टीकरण पूछे जाने की प्रक्रिया बाध्यकारी है। किसी भी स्थानांतरित शिक्षक से किसी प्रकार के स्पष्टीकरण की कोई सूचना नहीं है। यह तीसरी अनियमितता है।
पूछे गए स्पष्टीकरण के जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर उक्त मामले को विनोबा भावे विश्वविद्यालय के विधिवत गठित अनुशासन समिति के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इस समिति के समक्ष संबंधित शिक्षक को अपना पक्ष रखने का भी अधिकार उपलब्ध कराया जाता है। जानकारी के अनुसार इस तरह के किसी भी आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। यह चौथी अनियमितता है।
पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से निष्पादित करना है तथा इसमें गोपनीयता की कोई गुंजाइश नहीं है। इस मामले में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है। सभी कुछ गोपनीय तरीके से नियमों को ताख में रखकर किया गया है। यह पांचवीं अनियमितता है।
विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक की सेवा अत्यंत गरिमा पूर्ण सेवा है एवं उनसे संबंधित किसी भी प्रकार की कार्यवाही को बिल्कुल ही सतर्कता के साथ नियम परिनियम के तहत किया जाना अपेक्षित है। परंतु कुछ दिनों से विश्वविद्यालय में एक अजीब किस्म की कार्य शैली देखने को मिल रही है। एक शिक्षक जो कहीं से भी उत्तरदायी नहीं थे, उनको दोषी मानकर लॉ कॉलेज के निदेशक तथा विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद से हटाते हुए उन पर एक तरफा कार्रवाई कर दी गई। एक प्राचार्य जो महाविद्यालय के हित में एवं छात्र हित में प्राचार्य के अधिकार का उपयोग करते हुए नामांकन लिए उन पर कार्रवाई करते हुए उनको नौकरी से ही निष्कासित कर दिया गया।
विश्वविद्यालय के पिछले 33 वर्ष के इतिहास में अधिकारियों को इस प्रकार से कार्य करते हुए पहले कभी नहीं देखा गया। विश्वविद्यालय के एक बहुत ही योग्य कर्मचारियों को गलत काम करने का दबाव दिया गया और जब वह गलत काम करने से साफ इनकार कर गया, तो उसे दूसरे विश्वविद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस तरह की कार्रवाई से जहां एक तरफ विश्वविद्यालय के योग्य शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर निराश हो रहे हैं, वहीं विश्वविद्यालय की कार्य शैली पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
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