रांची। झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य के सरकारी एवं प्राइवेट अस्पतालों में चिकित्सा में लापरवाही से संबंधित एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान रिम्स की कुव्यवस्था पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने मंगलवार काे सुनवाई के दाैरान राज्य सरकार से मौखिक कहा कि या तो रिम्स में चिकित्सा उपकरण, मेडिकल फैसिलिटी सहित आधारभूत संरचना उपलब्ध कराई जाए अन्यथा इसे बंद करना ज्यादा बेहतर होगा।
कोर्ट ने कहा कि रिम्स में मेडिकल सुविधाओं का अभाव, मरीज के देखभाल में लापरवाही अक्सर देखने को मिलता है। रिम्स की व्यवस्था सही नहीं रहने पर लोग प्राइवेट अस्पतालों के शरण में जा रहे हैं। रांची शहर में ही कई प्राइवेट अस्पताल बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं। बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे इन प्राइवेट अस्पतालों की संख्या झारखंड में दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम में हेल्थ केयर की जगह वेल्थ केयर पर ध्यान रखा जाता है।
कोर्ट ने मामले में राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल करने का आग्रह किए जाने पर मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि शपथ पत्र में राज्य सरकार की ओर से ऐसी बातें कही जाती हैं, जिससे लगता है कि स्विट्जरलैंड में हैं। कोर्ट ने पिछले पांच सालों में झारखंड में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं लेने वाले नर्सिंग होम एवं अस्पतालों पर कार्रवाई और इस एक्ट का अनुपालन नहीं वालों पर लगे जुर्माना के संबंध में राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने राज्य सरकार को बताने को कहा है कि क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट का अनुपालन नहीं करने वाले अस्पताल एवं नर्सिंग होम पर कितना जुर्माना लगाया गया है। मामले के अगली सुनवाई आठ अगस्त को होगी।
याचिकाकर्ता के पिता की मौत मेदांता, रांची में अक्टूबर 2017 को इलाज में लापरवाही की वजह से हुई थी। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर झारखंड में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने एवं इस एक्ट का अनुपालन करने का निर्देश अस्पतालों को देने का आग्रह किया गया था। बाद में कोर्ट ने इस विषय में वृहत संभावनाओं को देखते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।
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