बिजनौर। राम मंदिर के निर्माण में विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष चंपत राय की अहम भूमिका है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर स्थित नगीना कस्बे के सरायमीर मोहल्ले के निवासी रामेश्वर प्रसाद बंसल और चंदौसी निवासी सावित्री देवी का विवाह हुआ। 18 नवंबर, 1946 में माता सावित्री देवी ने 10 संतानों में दूसरे नंबर पर चंपत राय को जन्म दिया। उनके पिता भी अपने शुरुआती दिनों से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे।
वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित, आरएसएम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय, बच्चों को फिजिक्स पढ़ा रहे थे तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची,क्योंकि वह संघ से जुड़े थे। अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहां गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है। पुलिस को भी अनुमान था,कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।

प्रोफ़ेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये, मैं बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊँगा। पुलिस वाले लौट गए। क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कहकर चंपत राय घर पहुंचे। माता पिता के चरण छू आशीर्वाद लिया और थाने पहुंच गए।
18 महीने बाद जब जेल से बाहर निकले तो इस युवा के आत्मबल और प्रतिभा को संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया ने पहचाना। रज्जू भैया ने उन्हें संघ का कार्य करने को कहा। चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को लात मार दी और संघ कार्य में जुट गए। बाद में विश्व हिन्दू परिषद में भेजे गए। राम मंदिर आन्दोलन के दौरान अयोध्या में सक्रिय हुए। अयोध्या के हर गली कूचे ने चंपत राय को पहचान लिया और हर गली कूचे को उन्होंने भी पहचान लिया। उन्हें अवध का इतिहास,वर्तमान,भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई,कि उनके साथी उन्हें ‘अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया’ उपनाम से बुलाने लगे।
बाबरी ध्वंस के पूर्व से ही चंपत राय ने राम मंदिर पर डॉक्यूमेंटल एविडेंस जुटाने प्रारम्भ किये। लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे। एक-एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला उनका घर इन कागजातों से भर गया। साथ ही हर जानकारी उन्हें कंठस्थ भी हो गई। के.परासरण और अन्य साथी वकील जब जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे,तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।
6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे,तमाम निर्देश दिए जा रहे थे। बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुंचाने की कसमें दी जा रहीं थीं,उस समय चंपत राय मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे। एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा ‘अब क्या होगा?’ उन्होंने हंस कर उत्तर दिया ‘ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी। ये जो करने आयी है, करके ही जाएगी। ‘इतना कहकर उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया, और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और इतिहास रचा गया।
चंपत राय को यूं ही राम मंदिर ट्रस्ट का महासचिव नहीं बना दिया गया है्। उन्होंने रामलला के श्रीचरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग ‘रामलला का पटवारी’ भी कहते हैं। यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है।
बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुलकर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है। चम्पत राय कह चुके हैं,कि जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे, युवा पीढ़ी को मथुरा की जिम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे। चंपत राय धर्म की छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखने वाले तपस्वी और विद्वान हैं।
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