खूंटी। दुर्गा पूजा, दीपावली, छठ जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों के बीत जाने के बाद खूंटी क्षेत्र में वनभोज उत्सव की शुरूआत हो गई है। जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पेरवांघाघ, पंचघाघ, लतरातू जलाशय, लटरजंग डैम, रानी फॉल, उलूंग जल प्रपात, सप्तधारा सहित अन्य पर्यटन स्थल नवंबर महीने के अंतिम सप्ताह से सैलानियों से गुलजार होने लगे हैं। भगवान बिरसा मुंडा जैसे अमर शहीद, मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा जैसे खिलाड़ियों की धरती खूंटी हमेशा से ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है।
प्रकृति ने खूंटी जिले को पेरवाघाघ जल प्रपात पंचघाघ, रानी फॉल, दशम फॉल, रिमिक्स फाल, उलूंग जलप्रपात, सप्तधारा, पाड़ी पुड़िंग, जैसे अनुपम पर्यटन स्थल दिये हैं, तो बाबा आम्रेश्वर धाम, नकटी देवी, सोनमेर मात मंदिर, पाट पहाड़ कर्रा जैसे कई विख्यात धार्मिक स्थल प्रदान किये हैं, जो सैलानियों और धार्मिक अस्था वाले लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच लाते हैं।
इन स्थलों में आकर सैलानी अपने को प्रकृति के निकट महसूस करते हैं। इनके अलावा कर्रा प्रखंड को लतरातू जलाशय, खूंटी का लटरजंग डैम, पेलौल डैम जैसे मानव निर्मित पर्यटन स्थल भी इन दिनों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हर साल अंतिम वर्ष की विदाई और नववर्ष के स्वागत में दूर-दूर से सैलानी इन स्थलों में पहुंचते है और प्रकृति के अनुपम उपहार और सौंदर्य को निहारते है। वैसे तो सालों भर इन पर्यटन और धार्मिक स्थलों में लोगों का आवगमन होता रहता है, पर नवंबर से फरवरी महीने तक हर दिन इन क्षेत्रों में सैलानियों की भारी भीड़ जुटती है। प्रकृति की अनमोल सुंदरता वाले दर्शनीय स्थल, पहाड़ी वादियों के बीच से बहती नदियों को निहारना काफी मनमोहक लगता है। जरूरत है इन मनमोहक स्थलों पर सुरक्षा के व्यापक उपाय करने के साथ इनको विकसित करने की।
नहीं हो सका पर्यटन स्थलों का अपेक्षित विकास
इन पर्यटक स्थलों के समग्र विकास को लेकर सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा कुछ खास नहीं किया जा सका है। इस ओर से प्रशासनिक रवैया लगभग उदासीन ही रहा है। खूंटी जिले के पर्यटन स्थलों की चर्चा तो खूब होती है, पर धरातल पर कोई पहल होती नहीं दिखाई देती है। जिले के पर्यटन स्थलों में कहीं भी सैलानियों के ठहरने के लिए किसी प्रकार का कोई इंतजाम नहीं है। इतना ही नहीं, सैलानियों के खाने-पीने और अन्य सुविधाओं की भी पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है। सड़कों की स्थिति को भी अब तक सुधारा नहीं जा सका है।
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