वॉशिंगटन : बिना जरूरत के खरीदारी करना आमतौर पर कुछ लोगों की आदत मानी जाती है, लेकिन ये आदत उनके शौक से ज्यादा उनकी दिमागी परेशानी है। दरअसल दिमाग एक तरह का डोपामाइन रिलीज करता है, जो खरीदारी के लिए मजबूर करता है। कई बार किसी दूसरी बीमारी के इलाज के लिए खाई जा रही दवाओं की वजह से डोपामाइन रिलीज होता है जैसे पार्किंसन की दवाएं। ये दवाएं खरीदारी के लिए प्रेरित करती हैं।
बेवजह की खरीदारी की एक वजह परवरिश
अमेरिका में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की न्यूरोसर्जन ऐन क्रिस्टीने दुहैम अपनी किताब ‘माइंडिंग क्लाइमेट: हाऊ न्यूरोसाइंस कैन हेल्प सॉल्व ऑवर एनवायर्नमेंटल क्राइसिस’ में कहती हैं- बेवजह की खरीदारी की दूसरी वजह परवरिश है। कोई किस माहौल में पला है और उसने खरीदारी को बचपन में किस तरह देखा है। इससे भी उसकी खरीदारी की आदत तय होती है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी ने बचपन से बार-बार यह सुना है कि ज्यादा खरीदारी इंसान को कंगाल बना देती है, तो वह बड़ा होकर कम खर्चीला होता है। अगर उसके माता-पिता ऐसे न भी हों तो भी। यदि किसी ने बचपन में सुना है कि ज्यादा खर्च कर बेहतर जिंदगी जी जाती है, तो वह बड़ा होकर बेवजह की खरीदारी करता है।
चेनस्मोकर्स बिना जरूरत खरीदारी करते हैं
दुहैम अपनी किताब में एक रिसर्च का हवाला देते हुए बताती हैं कि सिगरेट पीने वाले युवा जो अपनी तलब नहीं रोक पाते और जिनके परिवार में जुआरी रहे हों, वे भी बिना जरूरत के खरीदारी करते हैं। दिमाग खरीदारी के लिए कैसे प्रेरित होता है ये बताने के लिए भी उन्होंने किताब में उदाहरण दिए हैं।
आपने कहीं वॉटर कलर के बारे में पढ़ा और आपको अपनी चित्रकारी का शौक याद आया। आपने ऑनलाइन देखा और यह सस्ता लगा। आपने खरीद लिया। अगले दिन कोई घर के पास वॉटर कलर बेचने आया। आपको उसकी क्वालिटी ज्यादा बेहतर लगी। आपका दिमाग फिर खरीदने के लिए कहेगा। दिमाग ऐसे ही काम करता है।