बलरामपुर, विष्णु पाण्डेय। छठ महापर्व की आहट के साथ ही बलरामपुर जिले का ग्राम केरवाशिला भक्ति और कारीगरी का संगम बन गया है। गांव की गलियों में मिट्टी की खुशबू और रंगों की चमक घुली है, जहां बंगाली कारीगर अपने कुशल हाथों से भगवान सूर्य की प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं। यह परंपरा कोई नई नहीं पीढ़ियों से चली आ रही है यह कला, जो हर वर्ष छठ पूजा पर गांव की पहचान बन जाती है।
उल्लेखनीय है कि, केरवाशिला के इन बंगाली कारीगरों की मेहनत यह साबित करती है कि, आस्था केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि वह हर उस हाथ में जीवित है जो भक्ति को रूप देने में लगा है। उनके हाथों से निकली हर मूर्ति सूर्य देव की भक्ति ही नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, श्रम और कला के गहरे संगम की झलक देती है। यह वही भाव है जो मिट्टी से देवत्व को जन्म देता है और साधारण से असाधारण की सृष्टि करता है।छठ महापर्व के अवसर पर इन कलाकारों की सृजनशीलता पूरे क्षेत्र में न केवल आस्था का प्रतीक बनती है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि संस्कृति तभी जीवित रहती है जब उसके कारीगरों का सम्मान हो। केरवाशिला की मिट्टी में गढ़ी जा रही ये प्रतिमाएं इस बात का प्रमाण हैं कि जहां समर्पण और श्रम होता है, वहीं से भक्ति की सबसे उजली किरणें निकलती हैं।

