हजारीबाग। हजारीबाग के अतिसुदूर इलाके विष्णुगढ़ के राजकीय उच्च विद्यालय गाल्होबार से इसी साल 31 अक्तूबर को सेवानिवृत्त हुए डॉ प्रवीण कुमार की अपनी एक अलग पहचान है। वह हजारीबाग के ‘विलियम शेक्सपियर’ के रूप में जाने जाते हैं। अंग्रेजी पर जिस तरह से उनकी पकड़ है, ऐसे शिक्षक बिड़ले ही मिलते हैं। उन नौनिहालों का सौभाग्य है, जिन्हें अंग्रेजी के ऐसे विद्वान शख्सियत से ज्ञान प्राप्त करने का मौका मिला। अपने 33 वर्षों के स्वर्णिम शैक्षणिक सफर में बतौर शिक्षाविद् डॉ प्रवीण कुमार ने शिक्षा जगत में जो निशान छोड़ी है, वह छाप विद्यार्थियों की जेहन में अमित लौ की भांति आजीवन जगमगाता रहेगा।
इस बात का डॉ प्रवीण कुमार को तनिक गुमान नहीं है। वह आज भी इतने सहज और सरल तरीके से नौनिहालों को अंग्रेजी में निखारते हैं कि पता भी नहीं चलता कि इस वैश्विक विषय को कैसे आत्मसात कर वह पारंगत बन गए। वह लिटरेचर की बात हो या फिर पोएम, स्टोरी या फिर ग्रामर की। अंग्रेजी भाषा का सूक्ष्मता से ज्ञान बांटने में डॉ प्रवीण कुमार को एक शिक्षक के रूप में पारंगत हासिल है।
डॉ प्रवीण कुमार का अध्यापन का स्वर्णिम सफर करीब 33 वर्षों का रहा। वैसे सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके पढ़ने और पढ़ाने की निरंतरता खत्म नहीं हुई है। वह मूल रूप से अंग्रेजी भाषा और साहित्य का ज्ञान बांटते रहे हैं। एम.ए., बी.एड. के बाद पीएचडी योग्यताधारी डॉ प्रवीण कुमार के पढ़ाने का सिलसिला वर्ष 1991 से पारसनाथ कॉलेज डुमरी, गिरिडीह से शुरू हुआ, तो उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मन में बस एक ही मकसद कि देश के भविष्य कहे जाने वाले नौनिहालों की अंग्रेजी ठोस करनी है ताकि विश्व के किसी भी देश में फर्राटेदार अंग्रेजी बोल सकें और अंग्रेजियत की भाषा को समझ सकें।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी कहा करते थे कि अगर हिन्दी सीखी, तो पूरा देश भी भ्रमण नहीं कर सकते और अंग्रेजी सीखी, तो पूरा विश्व घूम पाएंगे। बस बापू के इसी संदेश को उन्होंने सार्थक करने की ठान ली। पारसनाथ कॉलेज में प्लस टू से ग्रेजुएशन तक के विद्यार्थियों को तीन वर्ष तक पारंगत बनाते रहे और फिर अंग्रेजी में बच्चों की नींव सुदृढ़ करने के प्रबल इरादे के साथ अंग्रेजी शिक्षा की लौ बिखरने के लिए आठ अक्तूबर 1994 को हजारीबाग के सरकारी विद्यालय प्राइमरी स्कूल बन्हे केरेडारी में अपना योगदान दिया। इसमें वह बिहार लोक सेवा आयोग में कामयाब होकर गए थे। तीन वर्षों के बाद उनका तबादला हजारीबाग के ही मध्य विद्यालय कंडसार, कटकमसांडी में हुआ। यहां वह 1997 से 2002 तक रहे।
उनकी प्रतिभा देख इस बीच दिसंबर 1999 में उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के आयुक्त के आदेश के आलोक में क्षेत्रीय उप शिक्षा निदेशक ने उन्हें झारखंड में लड़कियों के सबसे बड़े और बेहतर सरकारी स्कूल इंदिरा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय हजारीबाग में उन्हें प्रतिनियुक्त किया गया। वहां उन्होंने अंग्रेजी की अद्भुत छाप छोड़ी और मैट्रिक में लड़कियों ने अन्य विषयों के साथ अंग्रेजी में श्रेष्ठतम अंक हासिल किया। इस बीच गाल्होबार के साथ इंदिरा गांधी स्कूल दोनों जगहों पर वह पढ़ाने में समय देते रहे। फिर स्टेट कैबिनेट के आदेश पर जिला शिक्षा स्थापना में लिए गए निर्णय के अनुसार उच्च योग्यताधारी शिक्षकों को प्लस टू विद्यालय में भेजा गया। वहां विषयवार शिक्षकों का घोर अभाव था। ऐसे में जून 2004 से अप्रैल 2015 तक डॉ प्रवीण कुमार की प्रतिनियुक्ति जिला प्लस टू हाई स्कूल में रही। इस बीच जिला स्कूल का मैट्रिक और प्लस टू के नतीजे उच्चस्तरीय रहे। खासकर अंग्रेजी में विद्यार्थी बेहतर अंकों से उत्तीर्ण हुए।
मार्च 2015 से अक्तूबर 2015 तक डॉ प्रवीण ऑब्जर्वेशन होम में हाउस फादर के रूप में प्रतिनियुक्त किए गए। यहां उन्होंने भटके हुए बच्चों को पढ़ाई के माध्यम से समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की नेक पहल को भलीभांति अंजाम दिया। सेवा के अंतिम पांच वर्षों छह अक्तूबर 2020 से 31 अक्तूबर 2024 तक अपने मूल विद्यालय राजकीय उच्च विद्यालय गाल्होबार विष्णुगढ़ में कार्यरत रहे। 30 अक्तूबर 2024 को विद्यालय के शिक्षकों एवं छात्रों ने उन्हें सम्मान देते हुए अश्रुपूरित भावभीनी विदाई दी।
इस प्रकार वह 31 अक्तूबर 2024 को सक्रिय सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए। इस सम्मान सह विदाई समारोह में गाल्होबार पंचायत के अनेक गणमान्य लोग सहित गाल्होबार सीआरसी के सभी शिक्षक एवं प्रधानाध्यापक उपस्थित थे l डॉ प्रवीण कुमार कहते हैं कि वह अपना पूरा जीवन शिक्षा में समर्पित रखना चाहते हैं। शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होते हैं। आज भी वह शिक्षा के माध्यम से समाज को कुछ देने को लालायित रहते हैं।
शैक्षणिक पृष्ठभूमि में खुद पले-बढ़े और फिर बच्चों को भी मंजिल तक पहुंचाया
बिहार स्थित नवादा जिले के रजौली थाना के लेंगुरा गांव के मूल निवासी डॉ प्रवीण कुमार के पिता लाला जयेंद्र कुमार सन् अस्सी के दशक में हजारीबाग आ गए थे। मूल रूप से व्याख्याता के रूप में रहते हुए उनके पिता हजारीबाग स्थित कारा प्रशिक्षण संस्थान से बतौर प्राचार्य सेवानिवृत्त हुए थे। पिछले 44 साल से डॉ प्रवीण कुमार का पूरा परिवार हजारीबाग में जेपी केंद्रीय कारा के पीछे कोलघट्टी वार्ड-4 में रह रहा है। उनकी माता गायत्री देवी कुशल गृहिणी थीं। पांच भाइयों में दूसरे स्थान पर रहनेववाले डॉ प्रवीण कुमार के चौथे नंबर भाई विपिन कुमार सिन्हा प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेंस वेलफेयर एसोसिएशन (पासवा) के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और इंदिरा गांधी मेमोरियल स्कूल के संचालक हैं। डॉ प्रवीण कुमार की पत्नी सुनीता सिन्हा भी गृहिणी हैं। वहीं सुपुत्र श्वेतांक ‘शुभम’ ग्रेटर नोएडा में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर और सुपुत्री आर्या विशाल ‘ऋतिका’ बंगलुरू की एक कंपनी में एसोसिएट बिजनेस एनालिस्ट हैं। इस तरह पूरा परिवार उच्च शिक्षित और आदर्शवादी है।
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