बलरामपुर (Offbeat Special)। छत्तीसगढ़ में हरे सोने से पहचाना जाने वाला तेंदू पत्ता का उपयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है। वनोपज संग्रह पर निर्भर एक बड़ी आबादी के लिए तेंदूपत्ता आय का सबसे बड़ा स्रोत है। रामानुजगंज जिला वन संपदा की दृष्टि से काफी संपन्न है। यहां के जंगलों में कीमती वनोपज पाए जाते हैं जिसमें प्रमुख रूप से तेंदुपत्ता और महुआ शामिल है। मई के महीने में आमतौर पर तेंदुपत्ता की तोड़ाई शुरू हो जाती है।
मई के महीने में तेंदुपत्ता का सीजन होता है। यहां के ग्रामीण पचास-पचास तेंदुपत्ता का एक गड्डी बनाते हैं। ग्रामीण बताते है कि तेंदुपत्ता का बड़ा पेड़ भी होता है और पौधा भी होता है। (Offbeat Special) यहां के ग्रामीण तेंदूपत्ता जंगल से तोड़कर लाते हैं पूरा परिवार जंगल जाते हैं घर में लाकर बांधते हैं और फिर फड़ में ले जाकर बेचते हैं अभी फ़िलहाल लगभग साढ़े पांच सौ रुपए रेट चल रहा है।
ग्रामीण पेड़ से तेंदुपत्ता को तोड़कर गड्डी बनाते है। जिसके बाद उसे फड़ में सुखाया जाता है। तेंदुपत्ता का उपयोग बीड़ी बनाने में किया जाता है। फिलहाल फड़ के जरिए तेंदुपत्ता का रेट लगभग साढ़े पांच सौ रुपए है।
Offbeat Special: लगभग 14 लाख परिवारों से तेंदूपत्ता संग्रहण करवाती है राज्य सरकार
छत्तीसगढ़ में हर साल लगभग 13.76 लाख परिवारों से राज्य सरकार तेंदूपत्ता का संग्रहण करवाती रही है। संग्रहण का यह काम वन विभाग का छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ करता है। राज्य में इस संघ के 31 जिला युनियन और 901 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां हैं। (Offbeat Special) राज्य भर में 10,300 से अधिक संग्रहण केंद्र या फड़ हैं, जहां संग्राहकों से तेंदूपत्ता एकत्र किए जाते हैं।
छत्तीसगढ़ जब अलग राज्य बना था, तब एक मानक बोरा तेंदूपत्ता के संग्रहण के बदले 400 रुपया दिया जाता था। मानक बोरा यानी एक बोरे में पत्तों की एक हजार गड्डी और प्रत्येक गड्डी में 50 पत्ते। 2018 तक तेंदूपत्ता के प्रति बोरे के लिए 1800 रुपए दिए जाते थे। (Offbeat Special) लेकिन 2018 में राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार आने के बाद इसकी कीमत 4000 रुपए कर दी गई।
बलरामपुर जिला लघु वनोपज संघ के जिला अध्यक्ष लालसाय मिंज और बलरामपुर सुरेश सोनी महामंत्री प्रबंधक संघ छत्तीसगढ़ ने जानकारी देते हुए बताया कि तेंदूपत्ता 500 गड्डी हर वर्ष तोड़ने पर 10वीं और 12वीं के प्रतिभा वान बच्चों को क्रमश 15000, 25000 मिलता है। (Offbeat Special) मुखिया के मृत्यु पर 30000 से 400000 रुपए सदस्य गणों के मृत्यु पर 12000 रुपए दिया जाता है।
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