रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा अब आवारा कुत्तों की उपस्थिति चर्चा का विषय है। लोक शिक्षण संचालनालय ने ऐसा आदेश जारी कर दिया है, जिसे पढ़कर शिक्षक भी हैरान हैं और सोशल मीडिया भी ठहाकों से गूंज उठा है क्योंकि अब शैक्षणिक संस्थानों में ‘डॉग वॉचिंग’ की कमान प्राचार्य और हेडमास्टर के हाथों में सौंप दी गई है।
छत्तीसगढ़ लोक शिक्षण संचालनालय (DPI) का नया निर्देश पूरे राज्य में बहस का मुद्दा बन चुका है। आदेश में कहा गया है कि, हर स्कूल का प्राचार्य अब संस्थान का नोडल अधिकारी होगा, जिसे अपने नियमित शैक्षणिक कार्यों के अलावा परिसर में टहलते आवारा कुत्तों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए विभाग ने यह ज़िम्मेदारी सीधे स्कूल प्रबंधन पर डाल दी है।
शिक्षक समुदाय का कहना है कि, वह पहले से ही SIR जैसे कामों के बोझ में दबा हुआ है, और अब ‘कुत्ता मॉनिटरिंग’ का नया अध्याय शुरू कर दिया गया है। उनका तंज है “हम बच्चे पढ़ाएं, डेटा अपडेट करें, योजनाओं का प्रचार करें या फिर आवारा कुत्तों की लोकेशन बताते रहें?”
निकायों के डॉग कैचर को सूचना देने का जिम्मा अब प्राचार्यों पर रहेगा। यानी कुत्ते पकड़ने वाले आएंगे तभी, जब स्कूल प्रमुख पहले उन्हें ‘हाजिरी’ लगा दें। इस बीच कई शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर व्यंग्य किया “अगर यही चलना है, तो स्कूलों में हाजिरी रजिस्टर के साथ ‘डॉग ट्रैकिंग रजिस्टर’ भी लागू कर दीजिए।”
मध्यान्ह भोजन के समय स्कूलों में आवारा कुत्तों की बढ़ती आवाजाही विभाग के लिए चिंता का विषय थी। लेकिन समाधान यह नहीं निकला कि सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जाए, बल्कि यह तय किया गया कि कुत्तों की रिपोर्टिंग भी अब प्राचार्य ही करेंगे। यदि किसी बच्चे को कुत्ता काट लेता है तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाने का दायित्व भी स्कूल पर रहेगा यानी पढ़ाई से लेकर पालतू-संबंधी संकट तक, सबकुछ शिक्षकों के पाले में।
इस आदेश के बाहर आते ही कांग्रेस ने भी तीखा व्यंग्य किया। उनका कहना है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए शायद यही कदम बाकी था। कांग्रेस ने कार्टून जारी कर लिखा“शिक्षकों को श्वान प्रभार—भाजपा मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस।” पार्टी का आरोप है कि सरकार शिक्षकों को लगातार गैर-शैक्षणिक कार्यों में उलझाकर बच्चों की पढ़ाई को पीछे धकेल रही है।
कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि निगमों के पास पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर और स्टाफ है, लेकिन भार शिक्षकों पर डालकर सरकार जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है। SIR के काम से लेकर BLO तक, और अब कुत्तों की निगरानी तक शिक्षकों को हर भूमिका निभानी पड़ रही है, सिर्फ शिक्षक वाली भूमिका छोड़कर।
दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में स्कूल, अस्पताल, कॉलेज और सार्वजनिक स्थलों से आवारा कुत्तों को दूर रखने के आदेश पिछले महीनों में ही जारी किए थे। कोर्ट ने साफ कहा था कि ऐसी जगहों पर डॉग बाइट की घटनाएं प्रशासन की निष्क्रियता का संकेत हैं। पकड़े गए कुत्तों को शेल्टर होम भेजने का निर्देश भी जारी हुआ था। मगर राज्य सरकार ने इन निर्देशों की जिम्मेदारी सीधे स्कूलों पर डालना आसान समझा।
अब राज्यभर के सरकारी स्कूलों में चर्चा यह नहीं है कि परीक्षा कब है या नई पाठ्यसामग्री क्या आई बल्कि यह है कि आज कितने कुत्ते दिखे, किस दिशा में गए और कौन से दिन डॉग कैचर आएंगे।
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