दंतेवाड़ा। जिले के गीदम से महज 10 किलोमीटर दूर बारसूर में नागफनी नामक ग्राम स्थित है, नागफनी में नाग देवता का पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित 10वीं-11वीं शताब्दी के प्राचीन मंदिर आज भी दर्शनीय है। यहां परंपरा के अनुसार नागपंचमी के दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। नागवंशी राजाओं द्वारा स्थापित भव्य इस मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है, साथ ही नाग की अद्भुत कथाएं चर्चित है, लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है। स्थानीय ग्रामीणों की माने तो यह मंदिर नागवंशी राजाओं के समय में बनाया गया था, जिसे आज भी स्थानिय ग्रामीणों ने सहेज कर रखा है। प्रतिवर्ष नागपंचमी के अवसर पर इस नाग मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। विदित हाे कि बस्तर के आदिवासियों के गोत्र जीव-जंतु पर आधारित होते हैं। बस्तर की कई जनजातियों का गोत्र नाग है, इसलिए वे अपना उपनाम नाग लिखते हैं। विशेषकर हल्बा, मुरिया, महारा समुदाय के लोगों का कहना है कि नाग देवता को कुल देवता के रूप में भी पूजते हैं। इस समुदाय के लोग शरीर पर सर्प का गोदना भी गुदवाते हैं।
नागफनी में नाग पंचमी के अवसर पर आज शुक्रवार को वार्षिक मेला और यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसमें आस-पास के लगभग 25 गांवों के ग्रामीण नाग देवता से खुशहाली की कामना के साथ जान माल की सुरक्षा की प्रार्थना करने यहां पहुंचे थे। सुबह आठ बजे से ही दर्शनार्थियों की भीड़ नाग मंदिर में जुटने लगी थी। लोग कतारबद्ध होकर नाग देवता की पूजा अर्चना की। दोपहर साढ़े ग्यारह बजे यज्ञशाला में हवन यज्ञ प्रारंभ हुआ। आहुतियां डाली गई तथा प्रसाद ग्रहण किया।
नाग मंदिर की पूजा नागफनी ग्राम का अटामी परिवार करता है। मंदिर के प्रमुख पुजारी प्रमोद अटामी बताते हैं कि उनका उपनाम अटामी का आशय लंबी पूछ वाला या लंबा जीव से है। अर्थात सर्प ही अटामी है, अटामी परिवार नागफनी गांव के अलावा आस-पास के दर्जनों गांव में निवास करते हैं।
गीदम निवासी रज्जन गुप्ता ने बताया कि नागवंशी राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर की अपनी एक अलग ही पहचान है, एक अलग ही विशेषता है। नागपंचमी के दिन यहां हर साल मेला लगता है। दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं, नाग देवता को दूध चढ़ाया जाता है। बारसूर में नागवंशी राजाओं का राज्य था, नागवंशी राजाओं ने अपने शासन काल में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया, उनमें से कुछ मंदिर आज भी अस्तित्व में हैं, जिनमें से एक गीदम बारसूर मार्ग में नागफनी नामक ग्राम में नाग देवता का मंदिर स्थित है। नाग मंदिर का मुख्य दिशा पश्चिम की ओर है एवं 11वीं व 12वीं शताब्दियों की मूर्तियां हैं। मंदिर में प्रवेश द्वार के बायीं ओर शिलाखंड में नरसिम्हा की मूर्ति एवं दायीं ओर शिलाखंड में नृत्यांगना की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह में बायीं ओर नाग-नागिन की मूर्ति व दायीं ओर गणेश भगवान की मूर्ति व शिलाखंड में द्वारपाल की मूर्ति स्थापित है।
पौराणिक कथा के अनुसार,अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने सर्पों से बदला लेने और नाग वंश के विनाश के लिए एक नाग यज्ञ किया। क्यों कि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। उन्होंने सावन की पंचमी वाले दिन ही नागों को यज्ञ में जलने से रक्षा की थी। और इनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की थी। उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया, उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी एवं तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया।
उल्लेखनीय है कि नाग पंचमी के अवसर पर शहर में पहले अखाड़ों में दंगल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था, लेकिन अब यह देखने को नहीं मिलता। युवाओं में कुश्ती के प्रति कोई रूझान नहीं दिखता। अखाड़े प्राय: बंद हो चुके हैं, तथा अब जीम का जमाना आ गया है, जहां कुश्ती का कोई स्थान नहीं रह गया। इसके अलावा सपेरे नाग पंचमी के पहले से ही शहर में देखे जाते रहे हैं, लेकिन अब सपेरों की संख्या नहीं के बराबर रह गयी है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सांपों की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, और सर्प से क्षति होने का भय नहीं रहता है। इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा सांप की बांबियों पर भी पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा घर की दीवारों पर भी नाग चित्र अकिंत कर पूजा किये जाने की प्रथा है।