नई दिल्ली। हिंसा और संघर्ष के बीच नेपाल में बड़ी राहत की खबर है कि अब देश पुरानी रौ में लौटने को बेचैन है। वही आंदोलनकारी अब नेपाल के काठमांडू में पुनर्निर्माण में लगे हैं, जिन्होंने कल तक संघर्ष का रूख अख्तियार किया था। भारत समेत विश्व पटल पर एक बड़े सामाजिक आंदोलन से जुड़े नेपाल के एक नागरिक ने नाम न छापने की शर्त पर आंदोलन के सच का खुलासा किया है। ‘वर्ल्ड विजन न्यूज’ से खास बातचीत में बताया कि सच वह नहीं जो बोला या दिखाया जा रहा है, बल्कि इस आंदोलन की हकीकत कुछ और ही है।
उन्होंने बताया कि पशुपतिनाथ मंदिर पर भी हमले की तैयारी थी, लेकिन वही आंदोलनकारियों ने विश्व के इस महानतम शिवालय को सुरक्षित भी किया। वहां तिनका भर भी कुछ बिगड़ नहीं पाया और वह मानते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नेपाल में भगवान शिव का शासन है। पूरे देश पर उनकी कृपादृष्टि बनी रहती है। कुछ घटनाएं होती हैं, तो उसके गुनाहगार भी वही लोग होते हैं, जो पर्दे के पीछे से डर्टी पॉलिटिक्स करते हैं। यह तिकड़ी गंदी राजनीति का ही दुष्परिणाम है। बताया जा रहा है कि सोशल मीडिया पर बैन लगाया जाना नेपाल में हिंसा और संघर्ष का कारण बना। यह सही भी है और नहीं भी।
सोशल मीडिया पर बैन लगाने की दरकार सत्ता पक्ष को क्यों पड़ी, इसके तह में जाने की जरूरत है। दरअसल प्रजातांत्रिक देश बनने के बाद से नेपाल में घुमा-फिराकर कांग्रेस, सीपीयूएमएल और माओवादी का शासन रहा है। एक-दूसरे का धुरविरोधी होने के बावजूद स्वार्थ की पूर्ति के लिए कांग्रेस और सीपीयूएमएल हाथ मिलाने से भी बाज नहीं आते। नेपाल की राजनीति में शीर्ष ओहदे और राजनीति में मजबूत पकड़ वाले नेताओं, जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों के बच्चों की वजह से नेपाल में आक्रोश भड़कना शुरू हुआ। चूंकि नेपाल की करीब 80% जनता बेरोजगार और गरीब है। ऊंचे राजनीतिक ओहदेदारों के बाल-बच्चे विदेशों में रहकर पढ़-लिख रहे और सुख-चैन की जिंदगी गुजार रहे हैं। विदेशों में रहकर सोशल मीडिया पर अपने ऐशोआराम की दास्तां अक्सर बयां करते रहे हैं।
ऐसे में वर्षों से जलालत का दंश झेल रहे यहां के गरीब बेरोजगार युवाओं के सब्र का पैमाना छलकने लगा। सोशल मीडिया ग्रुप में आक्रोश भड़कता दिखाई देने लगा। इतने वर्षों में वही त्रिदलीय नेताओं, जनप्रतिनिधियों और सत्ता के शीर्ष पर काबिज मंत्रियों ने ऐसे बेरोजगार युवाओं की मंशा भांप ली और सोशल मीडिया पर बैन लगा दी ताकि उनकी ठाठ से भड़के देश के ऐसे युवा एक-दूसरे से कनेक्ट नहीं हो पाएं। इतने वर्षों में विभिन्न सरकारी निकायों, यहां तक कि न्यायालयों को भी अपनी पॉकेट की संस्था बनानेवाले यह भूल गए कि ‘गद्दी खाली करो कि जनता आती है’ का नारा फिजाओं में चरम पर पहुंच चुका है। …और वही हुआ जिसका डर था।
भड़की युवाओं की भीड़ भ्रष्ट होती व्यवस्था के खिलाफ सड़कों पर उतर आयी और भ्रष्ट सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। चूंकि न्यायपालिका ने भी सोशल मीडिया बैन पर अपना फैसला सुना चुका था, तो इसे जमीनी अमलीजामा पहनाने का सुनहरा अवसर भी सरकार को मिल गया। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की सुविधानुसार व्याख्या कर सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया। ऐसे में युवाओं का आक्रोश भड़क उठा और बड़ी सियासी घटना को अंजाम दे दिया। इन्हीं आंदोलनकारियों की आड़ में कुछ ऐसे असामाजिक तत्वों की पैठ हो गई, जिन्हें सदैव सत्ता की भूख रही है, लेकिन कभी कुर्सी के ओहदेदार नहीं बन पाए।
सामान्य आंदोलनकारियों ने सिर्फ सत्तासीनों का विरोध किया, लेकिन सियासी भूखेदारों अर्थात असामाजिक तत्वों आगजनी, तोड़फोड़, मारपीट यानी हिंसा की घटना को अंजाम दिया। नेपाल को अस्थिर किया और पशुपतिनाथ मंदिर पर हमले की नापाक कोशिश भी की। अगर ऐसी बात नहीं होती, तो आज वही युवा नेपाल के पुनर्निर्माण में लगे हैं। काठमांडू की सुंदरता लौटाने और शांति व्यवस्था कायम करने में जुटे हैं। यह वहां की तस्वीर बोल रही है। नेपाल के शख्स ने दावा किया है कि अगले 15 दिनों में नेपाल अपनी वही खूबसूरत रौ में लौट आएगा, जिसके लिए यह देश जगजाहिर है।
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