अमरनाथ पाठक, सीनियर एडिटर, हजारीबाग। डायरेक्टर बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना का किस कदर हजारीबाग के शिक्षा विभाग में दुरुपयोग किया गया, इसकी एक कड़ी उस वक्त खुल कर सामने आती, जब चार जनवरी को प्राथमिक शिक्षा निदेशक नेहा अरोड़ा पांच सदस्यीय टीम के साथ डीएसई आफिस जांच के लिए पहुंची।
दरअसल कक्षा तीन से आठ तक के करीब डेढ़ लाख बच्चों को लगभग 12 करोड़ की राशि से पोशाक मसलन-जूतआ, मौजा, स्वेटर, दुपट्टा आदि दिया जाना था। इसके लिए बच्चों के खाते में राशि भेजनी थी, लेकिन उन्हें पोशाक दिया गया। इसमें झारखंड शिक्षा परियोजना और जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय की मुख्य भूमिका रही।

नियमानुसार न विज्ञापन निकाला गया और कम पैसे में बेहतर क्वालिटी के पोशाक के बारे में विमर्श किया गया और चहेते आपूर्तिकर्ता को पोशाक आपूर्ति की जिम्मेवारी दे दी गई। जब उंगलियां उठीं और झारखंड विधानसभा में मामला गूंजा, तो जांच के लिए हजारीबाग में टीम पहुंची। जांच टीम की हेड प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने मीडिया के सवालों पर कहा कि वह हर पहलुओं को बारीकी और सूक्ष्मता से जांच कर रही हैं।
जो भी मामला सामने आएगा, वह पूरी रिपोर्ट सरकार को सौंपेंगी। उनके साथ झारखंड शिक्षा परियोजना की निदेशक किरण फांसी, प्रवासी पदाधिकारी जयंत मिश्रा, पलामू के आरडीडीई शिवेंदु कुमार और एक अन्य सदस्य थे। इस दौरान प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने डीएसई संतोष गुप्ता, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारियों समेत झाशिप पदाधिकारियों व कर्मियों से विभिन्न बिन्दुओं पर पूछताछ की और संबंधित संचिकाएं को सूक्ष्मता से खंगाला।
सूत्रों कि मानें, तो इस दौरान शिक्षा पदाधिकारियों को फटकार भी लगाई कि नौनिहालों से खिलवाड़ न करें और नियम विरुद्ध पोशाक वितरण कर इसे कारोबार न बनाएं। जांच शुरू होते ही पोशाक घोटाले में शामिल पदाधिकारी, कर्मी और आपूर्तिकर्ता सकते में हैं। बताया जाता है कि पर्दे के पीछे से इस घोटाले में एक शिक्षक नेता और डीएसई आफिस के भ्रष्ट लिपिक की भी बड़ी भूमिका है।
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भ्रष्ट इसलिए कि प्रमंडल के एक वरीय पदाधिकारी उस लिपिक पर भ्रष्टाचार के आरोप में कार्रवाई कर चुके हैं। इस मामले में जिले के एक वरीय पदाधिकारी ने भी पत्राचार कर नकारात्मक टिप्पणी की है।
पोशाक घोटाले के बड़े सवाल
पोशाक घोटाले में कई बड़े सवाल उठ रहे हैं। आपूर्तिकर्ता कजरी कॉटन चरही और मार्शल बुनकर सहयोग समिति बोदरा चुरचू दोनों के संचालक एक ही व्यक्ति बताए जा रहे हैं। इस संस्था के पास के पास 100 पोशाक निर्माण की क्षमता नही है, उसे 70 हजार पोशाक की जिम्मेवारी कैसे दे दी गई। सिर्फ कागज पर संस्था संचालित बताया जा रहा है।
निर्माण की जगह बाजार से खरीद कर पोशाक आपूर्ति करने का आरोप है। बताया जा रहा है कि एक शिक्षक नेता के मित्र की दुकान से संस्था को पोशाक आपूर्ति की गई। यह भी जांच की एक अहम कड़ी होनी चाहिए। विभाग की ओर से निविदा या विज्ञापन नहीं निकाल अन्य महिला समूह को आमंत्रित नहीं कर एकल व्यक्ति को आखिर काम देने की नौबत क्यों आयी। पक्षपोषित वेंडरों ने बेमेल पोशाक भेजा।
कहीं जूता है, तो मौजा नहीं, कहीं गया भी तो एकदम छोटा। बड़ी बच्चियों को दुपट्टा नहीं मिला, स्वेटर भी एकदम छोटा। ऐसी कई शिकायतें आती हैं। नियम विरोध दूसरे जिले लोहरदगा के सक्षम उत्पादक समूह को कार्यादेश देने का औचित्य ही क्या था, जबकि डीबीटी करने का आदेश प्राप्त है।
जिस समूह के पास प्रतिदिन 100 पोशाक निर्माण करने की क्षमता नहीं है, उसे 70 हजार बच्चों का पोषक आपूर्ति का जिम्मा क्यों दे दिया गया। सरकारी विद्यालय में बच्चो के पोशाक वितरण में अन्य कई गड़बड़झाले हैं।
विधायक ने उठाया मामला, बाबूलाल ने खड़े किए सवाल
हजारीबाग में पोशाक घोटाले का मामला सदर विधायक मनीष जायसवाल ने बीते सत्र में विधानसभा में जोर-शोर से उठाया था। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी सवाल उठाते और पत्राचार करते हुए पूरे मामले में निष्पक्षता, पारदर्शी और ईमानदारी से जांच की मांग उठाई थी।
टीम ने किया चुरचू का दौरा, देखा पोशाक का सैंपल
पोशाक घोटाले की जांच करने आयी टीम ने चुरचू का दौरा किया। वहां प्राथमिक शिक्षा निदेशक की टीम ने आपूर्तिकर्ता कजरी काटेन के कार्यों को देखा। साथ ही सैंपल का भी अवलोकन किया। घटिया पोशाक आपूर्ति की शिकायत आने पर डीसी स्तर से भी टीम गठित कर जांच कराई जा रही है।
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