रांची : झारखंड के पारसनाथ पहाड़ पर स्थित जैन तीर्थ सम्मेद शिखर विवाद भाजपा का हिडेन एजेंडा है। वे जैन और आदिवासी समाज के लोगों को लड़ाने की साजिश रच रहे हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यह आरोप लगाया है। सोरेन ने संताली भाषा में कहा कि मरांग बुरु हमारा था… हमारा है और हमारा रहेगा। आप लोग निश्चिंत रहें।
सोरेन बुधवार को गिरिडीह में आयोजित खतियानी जोहार यात्रा में बोल रहे थे। बता दें कि सम्मेद शिखर भी गिरिडीह जिले में ही पड़ता है। जैन समाज के देशभर में प्रदर्शन के बाद 10 जनवरी को आदिवासी समाज के लोगों ने भी इस तीर्थ क्षेत्र पर अपना अधिकार जताते हुए प्रदर्शन किया था। इसका नेतृत्व सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने किया था।
जैन और आदिवासी समुदाय का दावा
पिछले कुछ दिनों से पारसनाथ पहाड़ी को लेकर आदिवासी समुदाय और जैन समाज आमने-सामने हैं। जैन समाज जहां इसे अपना सबसे पवित्र तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर बता रहा है। इसे पर्यटन क्षेत्र से बाहर करने और तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग को लेकर देश भर में प्रदर्शन भी कर चुका है।
जवाब में आदिवासी समुदाय इसे मरांग बुरु (आदिवासियों के आस्था का प्रतीक ) घोषित करने की मांग पर अड़ गए हैं। इसके लिए वे राज्य भर में प्रदर्शन कर रहे हैं। 10 जनवरी को आदिवासी समुदाय ने सरकार को चेतावनी दी थी कि जैसा अंग्रेजों के गजेटियर और 1932 के खतियान में पारसनाथ के लिए मरांग बुरु का जिक्र है।
सरकार नोटिफिकेशन में इसे लाए। इस पहाड़ पर केवल जैन समाज का तीर्थ स्थल नहीं है, यहां उनकी आस्था भी जुड़ी हुई है। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो वे पूरे राज्य में आंदोलन करेंगे।
यहां से शुरू विवाद
सम्मेद शिखर के विवाद की शुरुआत दिसंबर 2022 में तब हुई थी जब यहां शराब पीते युवक का एक वीडियो वायरल हुआ था। सम्मेद शिखर के आसपास के इलाके में मांस-मदिरा की खरीदी-बिक्री और सेवन प्रतिबंधित है। इसके बाद भी लोग यहां इसका सेवन कर रहे थे।
जैन समाज का मानना है कि इसका प्रचलन 2019 के बाद से बढ़ा है। इसका कारण वे राज्य सरकार की तरफ से पारसनाथ पहाड़ को पर्यटन क्षेत्र घोषित करना बता रहे हैं। मांस-मदिरा के सेवन को रोकने के लिए सम्मेद शिखर को पर्यटन मुक्त क्षेत्र घोषित करने की मांग को लेकर उन्होंने देशभर में आंदोलन और विरोध प्रदर्शन किया। आंदोलन के दौरान दो जैन-मुनियों ने अपने देह भी त्याग दिए।
जैन समाज के विरोध के बाद 5 जनवरी को केंद्र ने रद्द किया था नोटिफिकेशन
देशभर में जैन समाज के विरोध के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकार की अनुशंसा पर सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन और इको टूरिज्म घोषित करने संबंधी नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था। केंद्र की तरफ से 2 अगस्त 2019 को जारी इको सेंसिटिव जोन अधिसूचना के खंड-3 के प्रावधानों पर तत्काल रोक लगा दी गई।
इको सेंसिटिव जोन की अधिसूचना के इसी खंड-3 में सभी पर्यटन स्थलों और इको-टूरिज्म संबंधी गतिविधियां शामिल थीं। साथ ही केंद्र सरकार की तरफ से राज्य सरकार को भी जरूरी कदम उठाने की सलाह दी थी। साथ ही जैन समाज की भावना का ख्याल रखने की भी बात कही गई थी। इसके बाद आदिवासी समाज ने अपना आंदोलन तेज कर दिया था।
अब समझिए 2019 से पहले क्या थी व्यवस्था
2019 से पहले जब सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित नहीं किया गया था, तब स्थिति पूरी तरह सामान्य थी। जैन समाज और आदिवासी समुदाय दोनों अपनी-अपनी आस्था से इस पहाड़ पर पूजा करते थे। यहां कोई भी बिना रोक-टोक के आ-जा सकता था।
जैन समाज का दावा है कि साल में एक दिन वे खुद आदिवासी समुदाय के लोगों की पूजा के लिए यहां स्वागत करते थे। इस पूजा के दौरान यहां वे किसी प्रकार की बली नहीं देते थे। आदिवासी समुदाय भी खुलकर इस बात को नहीं मानते हैं कि वे यहां किसी प्रकार की बलि देते थे। हालांकि आदिवासी नेताओं का मानना है कि बलि उनकी प्रथा है। वे वर्षों से इसका पालन करते आ रहे हैं।
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