हजारीबाग, डॉ. अमरनाथ पाठक। कुछ गुरुजी की जवानी इस कदर छलक रही है कि अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। दो सितंबर को हजारीबाग स्थित बरही के सनराइज स्कूल के निदेशक सुरेश प्रसाद पर जो आरोप लगा, अगर वह मामला सही है, तो निश्चित रूप से गुरु-शिष्य की परंपरा तार-तार होती दिखाई देती है। यह कोई पहला मामला नहीं है।
कई शिक्षकों की छात्राओं के साथ प्रेम कहानी उजागर हुई है। कई ने छेड़खानी की है और कई ने शिष्या के साथ शादी भी कर ली है। उदाहरण इसलिए देना उचित नहीं कि इससे समाज में बदनामी होती है। इस लेख का आशय यह है कि गुरु-शिष्य का रिश्ता बड़ा ही पावन होता है। सदियों से हम गुरु-शिष्य के बारे में पढ़ते और सुनते रहे हैं। वह शिष्य आरुणी का मामला हो या एकलव्य का। लेकिन वर्तमान युग में कुछ गुरुओं की कारस्तानी से पूरा शिक्षक समाज शर्मशार हो रहा है। गुरु ऐसे होते हैं, जिन पर माता-पिता खुद से ज्यादा भरोसा करते हैं।
शिष्य भी माता-पिता के बाद गुरु को ही भाग्य-विधाता मानते हैं। आज कल की छात्र-छात्राएं तो अपने माता-पिता से भी ज्यादा यकीन शिक्षक पर ही करते हैं। शिक्षक ने जो पढ़ा दिया, वह उनके लिए ब्रह्मलकीर बन जाता है। गुरु ने गलती से अगर गलत भी पढ़ा दिया, तो बच्चे गुरुवाणी को ही सही ठहराते हैं। इस विश्वास की हत्या करना कहां तक उचित है ? गुरु बच्चों के सबसे बड़े आइकॉन होते हैं। लेकिन कुछ शिक्षक इस महत्व और मर्यादा को नहीं समझ उस भरोसे का खून कर रहे हैं। नतीजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ता है।
अब बरही सनराइज स्कूल का मामला ही ले लीजिए, तो छात्रा के पिता के आरोप के अनुसार दसवीं की छात्रा के साथ दुष्कर्म का प्रयास कितना घिनौना कदम है। दो दिन के बाद शिक्षक दिवस आ रहा है। ऐसी वारदात से शिक्षक समाज को क्या और कैसे संदेश देंगे, यह आत्ममंथन और गहन चिंतन का विषय है। अगर गुरु ही गलत राह अख्तियार करेंगे, तो नौनिहालों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह सोचने वाली बात है। बहरहाल, कुछ ही शिक्षक ऐसी कुत्सित मानसिकता के हैं, जिन पर निश्चित रूप से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
शिक्षक राष्ट्रनिर्माता हैं और देश का भविष्य कहे जाने वाले नौनिहालों का जीवन गढ़नेवाली डोर उन्हीं के हाथों में हैं। इतिहास गवाह है कि पर्दे के पीछे से शिक्षकों की बेहतर और सकारात्मक भूमिका से शिष्य सर्वोच्च पायदान पर पताका लहराने में कामयाब हुआ है। ऐसे में हम पूरे शिक्षक समाज को ऐसे कृत्य का जिम्मेवार नहीं मान सकते।
शिक्षकों की बदौलत ही संपूर्ण विश्व में शिक्षा की लौ जल रही है। इस शिक्षक दिवस पर हम ऐसे गुरुओं को सादर सह शत-शत नमन करते हैं और विनती करते हैं कि समाज में फैले अंधकाररूपी मानसिकता को दूर करने में हमेशा की तरह सदैव ज्ञान का दीप जलाते रहें।
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