हजारीबाग। हजारीबाग में करीब एक सप्ताह से सर्दी का सितम कहर ढा रहा है। ऐसे मौसम में नौनिहालों का दर्द कौन समझेगा। सुबह कोहरे से ढका हजारीबाग और 6.30 बजे तैयार होकर नन्हे बच्चे स्कूल बस में बैठने को निकल पड़ रहे घरों से। जबकि इस सितम्बर ठंड में कितने लोग बिस्तर में उस वक्त ढकए-छइपए रहते हैं। अभिभावक पशोपेश में बच्चों को स्कूल भेजना उनकी मजबूरी है। लेकिन व्यवस्था के वाहक क्या कर रहे हैं। शिक्षा विभाग से सरकारी पत्र निकलता है कि क्रिसमस में ठंड को देखते हुए 26 दिसंबर से एक जनवरी तक स्कूल बंद किया जाता है। अब आप खुद ही अनुमान लगाइए कि उस वक्त तो ऐसे ही क्रिसमस की छुट्टियां रहती हैं, तो स्कूल बंद का फरमान जारी कर किसे जताया जा रहा है कि बच्चों के प्रति मन में कितना मर्म है।
उस वक्त से ज्यादा सर्द, सुबह से कोहरा, हाथ को हाथ दिखाई न दे, बत्ती जलाकर दिनभर वाहन चल रहे हैं, शाम चार बजे दस बजे रात जैसा अंधकार, लेकिन उस वक्त नन्हे मासूम कंधे पर भारी-भरकम बस्ता टांगें ठिठुरते – कंपकंपाते – खांसते – छींकते घर लौट रहे हैं। किसी को स्कूल बंद करने या कराने की परवाह नहीं। सबकी जुबां पर ताला जड़ा है। आखिर क्यों.. नौनिहालों का दर्द कब समझ में आएगा, जब उनकी तबीयत बिगड़ी जाएगी। लोग धिक्कार भी रहे, सरकारी फरमान की आस भी देख रहे और प्रशासन भी खामोश। इस शीतलहरी से बच्चों की सुरक्षा के लिए कौन जिम्मेवार आगे बढ़कर फिक्र कर रहा है। बच्चे स्वस्थ रहेंगे, तभी तो वह पढ़ेंगे। स्कूल प्रबंधन, प्रशासन, अभिभावक और सरकार को आगे बढ़ कर इन नौनिहालों की खातिर ऐसे मौसम में कुछ बेहतर पहल की दरकार होनी चाहिए।
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